केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जो कहा वो किया, केंद्र की मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. इसके तहत अब तीन पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी. लेकिन अब इस कानून को लेकर विपक्ष और कुछ स्वयंसेवी संगठनों के द्वारा लोगों में भ्रम फैलाने का काम शुरू हो गया है. इन लोगों की तरफ से कहा जा रहा है कि इस कानून से लोगों की नागरिकता छिन जाएगी.
नागरिकता संसोधन कानून लोगों को नागरिकता देने का कानून है, ना कि नागरिकता लेने का… इस बात को समझना होगा कि नागरिकता (संशोधन) कानून से भारतीय नागरिकों का कोई सरोकार नहीं है. संविधान के तहत भारतीयों को नागरिकता का अधिकार है. सीएए कानून भारतीय नागरिकता को नहीं छीन सकता.
सीएए में किसी भी भारतीय की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है. गृहमंत्री अमित शाह यह बार-बार कह चुके हैं कि सीएए में किसी भारतीय की नागरिकता छीनने का प्रावधान नहीं है. इसके तहत, 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम छह समुदायों को नागरिकता देने का प्रावधान है.
सवाल उठता है कि आखिर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी भारत में आये, उन्हें देश की नागरिकता क्यों नहीं दी जाए? अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम देश हैं और वहां हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी अल्पसंख्यक हैं. वहां उनके साथ जो अत्याचार हो रहा है, ये दुनिया से नहीं छिपी हुई है. ऐसे में अगर ये समुदाय वहां से भारत आए हैं और बस गए उन्हें नागरिकता देने में राजनीति क्यों हो रही हैं.
विपक्ष के विरोध की वजह
विपक्ष का कहना है कि इसमें मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. वे जानबूझकर अवैध घोषित किए जा सकते हैं. वहीं बिना वैध दस्तावेजों के भी बाकियों को जगह मिल सकती है. नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की सबसे बड़ी वजह यही है. विरोध करने वाले इस कानून को एंटी-मुस्लिम बताते हैं. उनका कहना है कि जब नागरिकता देनी है तो उसे धर्म के आधार पर क्यों दिया जा रहा है?
सरकार का तर्क
हालांकि केंद्र सरकार का इस मसले पर साफ मत है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक देश हैं और यहां पर गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर सताया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है. इसी कारण गैर-मुस्लिम यहां से भागकर भारत आए हैं. इसलिए गैर-मुस्लिमों को ही इसमें शामिल किया गया है.
कितने लोगों को तुरंत मिलेगी नागरिकता?
नागरिकता संशोधन कानून लागू होते ही 31 हजार 313 लोग इस कानून के जरिए नागरिकता हासिल करने के योग्य होंगे. जनवरी 2019 में संयुक्त संसदीय समिति ने इस बिल पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी. इस समिति के अध्यक्ष बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल थे. इस समिति में आईबी और रॉ के अधिकारियों को भी शामिल किया गया था.
समिति की रिपोर्ट में बताया गया था कि 31 दिसंबर 2014 तक भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर-मुस्लिमों की संख्या 31,313 थी. कानून लागू होने के तुरंत बाद इन्हें नागरिकता मिल जाएगी. इन लोगों में सबसे ज्यादा 25 हजार 447 लोग हिंदू और 5 हजार 807 सिख थे. इनके अलावा 55 ईसाई, बौद्ध और पारसी धर्म के 2-2 लोग थे. ये वो लोग थे जो धार्मिक प्रताड़ना के चलते देश छोड़कर भारत आकर बसे थे.
हालांकि यहां ये साफ कर दूं कि अभी ये आंकड़े सामने आये है, इसकी संख्या मे बढ़ोतरी हो सकती है. सरकार ने पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन बनाया है. इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया गया है. आवेदक अपने मोबाइल फोन से भी अप्लाई कर सकता है. आवेदकों को वह साल बताना होगा, जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था.
आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा. नागरिकता से जुड़े जितने भी ऐसे मामले पेंडिंग हैं, वे सब ऑनलाइन कन्वर्ट किए जाएंगे. पात्र विस्थापितों को सिर्फ पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा. उसके बाद गृह मंत्रालय जांच करेगा और नागरिकता जारी कर देगा.
पाकिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति
पाकिस्तान में हिन्दुओं के हालत क्या है, इसे भारत ही नहीं दुनिया के तमाम देश भी जानते हैं. पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार आम है. धर्म परिवर्तन, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और बलात्कार आम हैं. आजादी के वक्त यानी 1947 में पाकिस्तान में हिंदुओं की कुल आबादी 20.05 पर्सेंट थी… जो 1988 आते-आते 1.6 पर्सेंट पर पहुंच गई. ये आंकड़े पाकिस्तान के 1998 की जनगणना के हैं.
वहीं 2017 में जो जनगणना हुई, उसके मुताबिक, पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी लगभग 45 लाख थी. यानि पाकिस्तान की कुल जनसंख्या का 2.14 प्रतिशत. जबकि, मुस्लिमों की आबादी पाकिस्तान में 96.47 प्रतिशत है. हिंदुओं की जनसंख्या की तुलना अगर आजादी के समय से हम करें तो ये बेहद कम है. विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि इनकी जनसंख्या में आई कमी के पीछे एक बड़ा कारण धर्मांतरण है. साल 2020 में पाकिस्तान की एक एक्टिविस्ट ने क्लेम किया था कि वहां के सिंध प्रांत में एक दिन में ही 171 लोगों को इस्लाम कुबूल कराया गया. इसमें हिंदू महिलाएं, बच्चियां और मर्द शामिल थे. वहीं मई 2023 में एक रिपोर्ट आई जिसके अनुसार, पाकिस्तान में एक साथ 50 लोगों ने हिंदू धर्म को छोड़कर इस्लाम कुबूल कर लिया. इसमें कुल 10 परिवार शामिल थे. वहीं महिलाओं की बात करें तो इसमें 23 महिलाएं थीं, जिसमें एक साल की एक बच्ची भी थी.
ह्यूमन राइट कमीशन पाकिस्तान की एक रिपोर्ट की मानें तो पाकिस्तान में हर साल लगभग 1000 लड़कियों का धर्मांतरण जबरन कराया जाता है. इनमें ज्यादातर बच्चियों की उम्र 14 से 20 साल के बीच होती है. कई रिपोर्ट्स दावा करते हैं कि पहले इन बच्चियों को अगवा किया जाता है और फिर उन्हें धमका कर, डरा कर उनका धर्मांतरण कराया जाता है और फिर उनका किसी मुस्लिम युवक से निकाह करा दिया जाता है.
ये रिपोर्ट तो केवल एक बानगी भर है, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश मे वहां के अल्पसंख्यको का जो दयनीय हाल है और अगर नागरिकता के लिए वे भारत मे शरण ले रखा है तो फिर इन्हे नागरिकता क्यों ना मिले.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
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Tags: CAA, CAA protest, Narendra modi
FIRST PUBLISHED : March 12, 2024, 08:54 IST