रिपोर्ट: निशा कांत शर्मा
गुजरात की पावन भूमि के कच्छ प्रदेश के मांडवी नाम के पवित्र स्थान पर 4 अक्टूबर, 1857 को एक पुण्य आत्मा का प्रादुर्भाव हुआ जो आगे चलकर क्रांतिकारी पंडित श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हुए ।
मुम्बई में संस्कृत भाषा के उच्चतम अभ्यास व शिक्षा के साथ जब उनका सान्निध्य वेदों के महान चिंतक, संस्कृत भाषा व व्याकरण के महान पंडित, आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी के साथ हुआ तो उनकी काया ही पलट गई एक बार मिलने के बाद वे उनकी विद्वता, वेद ज्ञान से प्रभावित हो कर सदा उनके ही होकर रह गए ! स्वामी दयानंद सरस्वती के सान्निध्य में रहते हुए वे उनके परम् भक्त व शिष्य बने । उन्होंने अनेक आर्ष गर्न्थो, एवं वेदों का अध्ययन, स्वाध्याय करते हुए अनेकों उपदेश व प्रवचन दिए जो विश्व प्रसिद्ध हुए, उनके ओजस्वी प्रवचनों को सुनकर, पढ़कर उनकी ख्याति संसार भर में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगी । स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए उन्हें विदेश से स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ने की प्रेरणा दी और उनकी प्रेरणा से उन्होंने बड़े साहस और वीरता से इंग्लैंड के सामने इंग्लैंड की धरती पर ही लंदन स्