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भारतीय मीडिया फाउंडेशन शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ करेंगी जंग।

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  • हर कदम पर शैक्षिक मीडिया अधिकारी एवं पत्रकार करेंगे शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की निगरानी
  • भारतीय मीडिया फाउंडेशन शिक्षा फोरम का होगा सशक्त मीडिया भ्रष्टाचार मुक्त भारत मिशन का अगला कदम
  • एके बिंदुसार (संस्थापक- भारतीय मीडिया फाउंडेशन)

नई दिल्ली। शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार किसके द्वारा कौन है इसका जिम्मेदार यह जानना अति आवश्यक है।

सबसे पहले हमें जानना है शिक्षा के महत्व को शिक्षा विकास की जननी है। इसके बिना सर्वांगीण विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन भ्रष्टाचार ने शिक्षा क्षेत्र में भी जड़ जमा लिया है।

रुपये (कैपिटेशन फीस) लेकर स्कूलों/कॉलेजों में प्रवेश देना, विद्यालयों द्वारा सामूहिक नकल कराना, प्रश्नपत्र आउट करना, पैसे लेकर पास कराना और बहुत अधिक अंक दिलाना, जाली प्रमाणपत्र और मार्कशीट बनाना आदि शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार के कुछ उदाहरण हैं। स्कूल/कालेजों को मान्यता देने में अरबों रुपए का लेनदेन होता है; प्राइवेट कोचिंग का बोलबाला है। स्कूलों में शिक्षक स्वयं नहीं पढ़ाने आते, बहुतों ने पांच सौ-हजार रुपए मासिक पर किसी ऐरे- गैरे को अपने जगह पर पढ़ाने के लिए रख छोड़ा है।

नेताओं और अधिकरियों की मिलीभगत से हजारों करोड़ के नकल उद्योग, नियुक्ति उद्योग एवं स्थानान्तरण उद्योग स्थापित हो गये हैं। उत्तर प्रदेश में नकल पर नकेल कसने के लिए कल्याण सिंह ने ‘नकल अध्यादेश’ लागू किया था जिसे मुलायम सिंह यादव ने चुनावी मुद्दा बनाया और सार्वजनिक घोषणा की कि ‘चुनाव जीतने पर मुख्यमंत्री बनते ही नकल अध्यादेश वापस ले लूंगा।’

ऐसे हजारों विश्वविद्यालय हैं, जहां प्रमाणपत्रों की बिक्री हो रही है। इनमे से अधिकांश निजी विश्वविद्यालय हैं, जिनकी बागडोर बड़े व्यवसायियों, उद्योगपतियों, और शिक्षा माफियाओं के हाथ में हैं। शिक्षा एक ‘धन्धा’ बना दिया गया है। ऐसे संस्थानों में ऊपरी चमक-दमक काफी होती है; अच्छी बिल्डिंग, अच्छे और आधुनिक व्यवस्था से पूर्ण कक्षाएं, लैब इत्यादि हैं किन्तु ऐसे संस्थानों में शिक्षा नहीं, शिक्षा का व्यवसाय होता है।
संविधान में जो शिक्षा की गारंटी दी गई है सरकार भी अपना पल्ला झाड़ रही है शासन सत्ता में बैठे हुए लोग अपने को भगवान समझ रहे हैं और संविधान को कूड़ेदान में रखकर नए-नए प्रोग्रामों के साथ अपने राजनीतिक विरासत को खड़ा कर रहे हैं।

बात यही समाप्त नहीं होती, देश में उच्च शिक्षा के प्रचार-प्रसार एवं नियंत्रण के लिए बने कई समितियां स्वयं गले तक भ्रष्टाचार की दल-दल में फंसी हुई हैं। आज देश भर में ऐसे सैकड़ों उच्च शिक्षण संस्थान है, जो विश्वविद्यालय के लिए तय मानकों और मापदंडों के अनुरूप नहीं है, फिर भी उनका संचालित होना तथा शिक्षा के नाम पर व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल होना विश्वविद्यालय अनुदान आयोग पर सवाल खड़ा करता है।
आज धड़ल्ले से देश भर में तकनिकी संस्थान खुल रहे हैं, जो सिर्फ और सिर्फ शिक्षा माफियाओं के लिए धन-उगाही का केंद्र बने हुए हैं। ऐसे हजारों तकनिकी संस्थान संचालित हैं जो तकनीकी पाठ्यक्रमों के लिए आवश्यक मापदंडों को पूरा नहीं करते हैं, परदे के पीछे लाखों के खेल से इन संस्थानों को ‘अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद’ द्वारा अनुमोदित किया जाता है। अनुमोदन के लिए जाँच प्रक्रिया तो सिर्फ एक कागजी खानापूर्ति भर होती है।

बहुत से ऐसे प्रोफेसर हैं जो अपने शोधार्थी से पैसे लेकर स्वयं उनका शोध पत्र लिख डालते हैं या फिर अन्य विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाती हैं जो एक निश्चित राशि के बदले उनका शोध पत्र न केवल तय समय सीमा में लिख कर दे देते हैं बल्कि उनके मौखिक परीक्षा तक सहयोग करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके जितना ‘शुल्क’ लिया गया है उसके अनुरूप ‘सेवा’ भी हो जाय। कुछ विश्वविद्यालय ऐसे भी हैं जहां कई प्रोफेसर अपने शोधार्थियों से यूजीसी से मिलने वाले स्कालरशिप में भी कमीशन लेते हैं। वह छात्रों पर दबाव डालते हैं कि या तो वह उन्हें प्रति माह एक तयशुदा राशि दें अन्यथा मिलने वाली छात्रवृत्ति पर यह कह कर रोक लगा दी जाएगी कि ‘इनका काम स्तर का नहीं है’। हार मान कर छात्रों को उनकी अनैतिक मांगों के आगे न केवल झुकना पड़ता है बल्कि अपने सम्मान की बलि भी देनी पड़ती है।
अब ऐसी हालत में शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना एक बड़े संघर्ष का रास्ता दिख रहा है।
यह तभी समूह होगा जब देश में नागरिक पत्रकारिता की स्थापना होगी और सरकार अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ है तो भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए एक भ्रष्टाचार मुक्त विधेयक लाएं।

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