Search
Close this search box.

पारदर्शिता का पलायन तेज गति से हो रहा है पत्रकार हो या फिर पुलिस और शासन

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

रिपोर्ट: निशा कांत शर्मा 

पारदर्शिता का पलायन तेज गति से हो रहा है पत्रकार हो या फिर पुलिस और शासन* *प्रशासन, बदलाव अच्छा नहीं हो रहा है तब 10परसेंट सच और पारदर्शिता भी लोगों के एहसास से परे जा रही है*–
लेकिन इस बदलाव का असर पब्लिक, युवा पीढ़ी,समाज,पर ज्यादा बुरा असर छोड़ रही है क्योंकि यही बो पावर फुल कार्य पालिकाएं हैं जिनका असर हर इंसान पर तेजी से होता है–
सबसे बड़ा मुद्दा है समाज यहीं से हर मुद्दा शुरू होता है यहीं पर समाप्त जो मुद्दे उठाने बालों को बहुत छोटे लगते हैं सही मायनो में वहीं सबसे बड़े होते हैं सारी जरूरतें तो इंसान को चाहिए जानवर तो हमारे रहमों कर्म पर जी रहा है सरकार किसी की भी हो यदा कदा को छोड़कर इंसानों के अधिकार घोषणाओं के घोड़ों पर लाद तो दिये जाते हैं और उतर दूसरे पते पर जाते है रह जाता है कमजोर इंसान मन मसोस कर आवास योजना हो या शौचालय इसमें अभी तक बो बेचारे बेछत इंसान लायन में लगे हैं जो सन 15 से लेकर 24 तक छत नसीब नहीं हुई और जिनके मकान दो दो हैं उन्हें यह आवास और सौंचालय मिल रहे हैं यह मुद्दा कैसे छोटे हो सकते हैं जरा जाकर फुटपाथों पर देखो उन परिवारों के दर्द से रूबरू हो जिनमें सामिल मासूम बच्चे और बुजुर्ग भी है जो हर मोसम से संघर्ष करते हुए जीवन जी रहे हैं- लेकिन सरकार की नॉलेज में यह गरीब सेवा बड़े निष्पक्ष ढंग से की जा रही है गलती किसकी है आप तो अच्छा कर रहे हैं लेकिन आपके चहेते विस्वास घात– क्या सरकार ने कभी इन आंकड़ों को इकट्ठा किया है कि कितने फोर्म इन जरूरतों के लिए भरे गए थे कितने कार्य पूर्ण और सही हुए, नहीं घोषणाओं में शामिल हो गए लेकिन गरीब कमजोर इंसान आज भी इतनी सुविधाओं के होते हुए भी असुविधाओं में जी रहा है यह इसी सरकार की बात नहीं है जो भी सरकारें आईंऔर भी ज्यादा हुआ कोई कम नहीं इसे लापरवाह शासन और प्रशासन,कह सकते हैं, क्यों कि आपने जो पब्लिक के लिए किया अच्छा किया पर उसकी जगह लाभ कहीं और हो रहा है यह आपने लापरवाही के तहत या जानकर किया पर बुरा -आपने जानने की कोशिश ही नहीं की और अगर की है तो इसे घोटाला कहने में कोई गुरेज नहीं हमने भी कई एसे घोटाले लापरवाही और पावर में गुम होते हुए अपनी कलम के द्वारा मैंन जगह पर डाले हुआ वहां से भी कुछ नहीं कुल मिला कर कहा जा सकता है कि कर्म की चोरी और लापरवाही दोनों बखूबी चल रही है,न पत्रकार की पारदर्शिता बची है न पुलिस और सरकार की सब परसेंट मे चल रहा है।
*लेखिक पत्रकार

Leave a Comment

और पढ़ें