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पितृ-दिवस father’s day पर परम पूज्य दिवंगत पिताश्री को समर्पित

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रिपोर्ट: निशा कांत शर्मा 

एक लघुकथा–

#बाबू_जी_का_दर्द…!

अभी शाम का धुंधलका रात की तरफ जाते हुए खत्म नही हुआ था ,कि मोहल्ले की मुख्य सड़क पर ” बाबू जी “चिंतातुर मुद्रा में तेज तेज कदमों से बेंत का सहारा लेकर टहल रहे थे ।बार बार उनकी नजर मुख्य चौराहे से आती गाड़ियों की तरफ उठ जाती। इंटर कालेज से रिटायर मास्टर बद्री प्रसाद को पूरे शहर में लोग बुज़ुर्गवार उम्र की दहलीज पर पहुचने के कारण सम्मान में लोग “बाबू जी ” कहा करते थे ।भरे पूरे परिवार से सम्बद्ध बाबू जी अपनी प्रखर वैचारिकता और कड़े अनुशासन के कारण उम्र के इस मुकाम पर दबदबा रखते थे ।
उनके माथे आई सिलवटें चिंता की लकीरों को देख कर आते जाते लोग चिंता की वजह समझना चाहते उनकी चिंता की जानकारी सभी लोगो में उत्कंठा जगा रही थी परंतु कौन पूछे बाबू जी आज क्यों परेशान हैं ?मौहल्ले के प्रबुद्ध नोजवान शालू जो अक्सर बात कर लेता था आखिर पूंछ लिया— “बाबू जी आज आप क्यों परेशान हैं चिंता में डूबे टहल रहे हैं “?
बाबू जी ने ढेर सारी चिंता की लकीरें चेहरे पर फैलाते हुए कहा– “इतनी रात हो गई है बच्चे बहुत देर के निकले हैं अभी तक घर नही आये इस बात को लेकर परेशान हूँ मैंने जोर देकर कह भी दिया था जल्दी घर लौटना तुम लोग” बाबू जी यह कह कर फिर बार बार चौराहे की ओर से आती गाड़ियों की ऒर देखने लगे ”
“……….” निःशब्द चुप मौन शालू एकटक बाबू जी को देखता रह गया, दूर खड़े लोग बाबू जी की चिंता पर कयास लगा रहे थे । शालू ने फिर पूंछा—-बाबू जी कौन से बच्चे किसके बच्चे जिनकी इतनी फिक्र है आपको ?
–वे चारों एक साथ घूमने निकले हैं !
“……..”शालू फिर विस्मय से बाबू जी को देखने लगा !
हा हा हा—का जोरदार ठहाका लगा कर हंसने लगा । शालू के ठहाकों से बाबू जी की चिंता गुस्से में बदल गई बेंत उठा कर उसकी तरफ करते हुए बोले— ” तू क्यों ठहाके लगा रहा है? तब शालू नेअपनी हंसी पर क़ाबू करते हुए कहा —“”बाबू जी आपके बड़े बेटे शांतुन भय्या पुलिस में अफसर हैं ,दुसरे मयंक भय्या जज हैं, तीसरे दीपांश मेरे साथ का है बहुत तेज है और प्रशासनिक अफसर है चौथे वकील साहव नियमांक हैं !
ऐसे में आप इनको बच्चा कह कर जल्दी घर न आने की चिंता में हैं यह सब सुन कर ठहाका लगाया ।मास्टर बद्रीप्रसाद शालू की बात पर तनिक गम्भीर हुए अपनी ऐनक को ठीक करते हुए बोले—- “तुम सही कहते हो मेरे सब बेटे सक्षम और कुशल हैं ,ज़िन्दगी की दुश्वारियों से भी परिचित हैं परंतु यह एक पिता की चिंता है और ओलाद के लिए ममता और वात्सल्य का आह्लाद है जो चिंता के रूप में दिख रहा है । अभी तुम नही , बाद में समझोगे बाप बनने पर “——यह कहते हुए बाबू जी फिर उसी चिंतातुर अंदाज़ में टहलते रहे ।
शालू ने इस वाकये को सुन कर उम्र की नादानी में कई बार हवा में उड़ा दिया था ।परन्तु आज जब शालू अपने बेटे क्षितिज की इंजीनियर की पढ़ाई पूरी होने के बाद ,पहली बार दूर किसी शहर में जॉब के लिए स्टेशन पर छोड़ने गया, तब पिता की दृष्टि से ओलाद के प्रति उभरते आह्लाद और दर्द का अनुभव कर सका बार बार नोजवान बेटे क्षितिज को सावधनी भरी ताकीदें देकर होशियारी की नसीहत देने के बाद वो अंदर से कमजोर होता जा रहा था ।इतना कमजोर कि क्षितिज की गाड़ी निकलने के बाद फफक रो पड़ा अकेले में। पिता के चिंता में आंसू वात्सल्य की पीड़ा का आह्लाद शायद जमाना नही देख पाता है तब संताने पिता की आँखों में झांकते दर्द को पढ़ सकें ? शालू की ज़िंदगी में एक शिक्षक के तजुर्बे की झोली से निकली एक कहानी आज जीवन्त हो कर कहानी की प्रतिछाया के रूप में अनुभव की गठरी में जमा हो गई जिसे पिता बनने से पहले वो कभी नही समझ पाता । बाबू जी मास्टर बद्री प्रसाद के बरसों पहले बोले शब्द सत्य औऱ सार्थक बिम्ब बन कर जीवन्त हो चुके थे, मोह वात्सल्य ममता और आह्लाद की मनोदशा में शालू बार बार बुदबुदा रहा था——-” बाबू जी आप सही थे ,पिता का दर्द पिता बन कर समझ में आता है……बाबू जी आप आज बहुत याद आये…….. ! #राजू_उपाध्याय(स्वलिखित-एटा उत्तर प्रदेश )

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