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लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को संवैधानिक दर्जा दिलाने एवं पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के अभिव्यक्ति के आजादी की महा क्रांति।- एके बिन्दुसार

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रिपोर्ट: एके बिन्दुसार (चीफ एडिटर BMF NEWS NETWORK)

23 अगस्त 2024 को दिल्ली से शुरू होगी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को संवैधानिक दर्जा दिलाने एवं पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के अभिव्यक्ति के आजादी की महा क्रांति।- एके बिंदुसार (संस्थापक एवं केंद्रीय अध्यक्ष केंद्रीय मैनेजमेंट अफेयर्स कमेटी भारतीय मीडिया फाउंडेशन।)

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मित्रों देश में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया आज अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है कहीं भी किसी भी क्षेत्र में मीडिया की आजादी नहीं दिखाई दे रही है।
देश में अगर भय भूख भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण बनाना है तो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को संवैधानिक दर्जा देना होगा तभी पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता सत्यता को पूरे निडरता के साथ रख पाएंगे यहां हमें कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को समझने की जरूरत हैं।
संविधान के अनुच्छेद 50 कार्यपालिका को न्यायपालिका से अलग रखती है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 से 78 केंद्रीय कार्यपालिका से संबंधित हैं। अनुच्छेद 52 में कहा गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 53 इस बारे में बात करता है कि संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और उसके द्वारा प्रयोग की जाएगी।

(1) राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा । (ख) राज्यपाल के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद या राज्य के विधान-मण्डल को निवारित नहीं करेगी ।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 172 राज्य विधायिका के कार्यकाल से संबंधित है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 भारत की संसद का एक अधिनियम है जो संसद के सदनों और प्रत्येक राज्य के विधानमंडल के सदनों या सदनों के चुनाव के संचालन, उन सदनों की सदस्यता के लिए योग्यता और अयोग्यता प्रदान करता है।
संविधान के अनुच्छेद 245 में कहा गया है कि इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए संसद भारत के संपूर्ण राज्य क्षेत्र अथवा उसके किसी भाग के लिये विधि बना सकेगी तथा किसी राज्य का विधानमंडल उस संपूर्ण राज्य अथवा किसी भाग के लिये विधि बना सकेगा।
अब हमें आगे यह समझना है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहें जाने वाले मीडिया के लिए भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में क्या व्यवस्था है अब यहां हम चर्चा करेंगे मीडिया के संदर्भ में।
संविधान का अनुच्छेद 19 भाषण की स्वतंत्रता प्रदान करता है जो मौखिक/लिखित/इलेक्ट्रॉनिक/प्रसारण/प्रेस के माध्यम से बिना किसी डर के स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है।
प्रेस और मीडिया को समान अधिकार हैं – किसी भी व्यक्ति को जानकारी लिखने, प्रकाशित करने, प्रसारित करने और प्रसारित करने का न तो अधिक और न ही कम। प्रेस को यह अधिकार भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 19(1)(ए) में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से प्राप्त है।
भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार आर्टिकल (Right to freedom article ) अनुच्छेद 19 से 22 शामिल हैं, जो नागरिकों को कुछ मौलिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। इनमें भाषण और अभिव्यक्ति का अधिकार, संघों का रूप, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की स्वतंत्रता, गरिमापूर्ण जीवन जीने की स्वतंत्रता आदि शामिल हैं।
अब यह स्पष्ट हो रहा है कि देश के प्रत्येक नागरिकों की जो स्वतंत्रता है जिस अनुच्छेद के तहत है उसी में प्रेस मीडिया को भी शामिल किया गया है।
लोकतन्त्र के तीन स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका सविधान में वर्णित है, परन्तु मीडिया प्रिंट एवं टी. वी.) के बढ़ते दायरे एवं प्रभाव लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ मीडिया लोकतन्त्र का चौथा स्तंभ इसे कहा जाने लगा है।
और गहराई से समझने के लिए एक फैसले के संदर्भ कि यहां हम चर्चा करेंगे……
17 सितंबर 2020 को द हिंदू में प्रकाशित किये संपादकीय में मीडिया की स्वतंत्रता के महत्व एवं संबंधित मुख्य विषय के बारे में बात की गई है।
उच्च न्यायपालिका ने एक आदेश पारित किया जो मीडिया के विनियमन से संबंधित है। एक आदेश में, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य के पूर्व महाधिवक्ता से जुड़े एक मामले के संबंध में कुछ भी उल्लेख करने से, मीडिया और यहाँ तक कि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया। दूसरे मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसने एक समाचार चैनल के शेष एपिसोड के प्रसारण को रोक दिया, क्योंकि यह एक विशेष समुदाय को तिरस्कृत कर रहा था। हालाँकि दोनों आदेशों के प्रभाव वाक् स्वतंत्रता और जानकारी प्राप्त करने के नागरिक अधिकारों पर होंगे, उन्हें अलग-अलग संदर्भों में देखा जाना चाहिये। जहाँ प्रथम आदेश संभावित मानहानि या गोपनीयता के हस्तक्षेप को रोकने या मुकदमे या जाँच की निष्पक्षता की रक्षा करने के लिये परिकल्पित किया जा सकता है, वहीं दूसरे को घृणा के प्रचार पर रोक लगाने के रूप में देखा जा सकता है। इस संदर्भ में, व्यक्तिगत अधिकारों एवं स्वतंत्र प्रेस के मध्य उचित संतुलन की आवश्यकता है।

प्रेस की स्वतंत्रता पर भारतीय
संविधान, अनुच्छेद 19 के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो वाक् स्वतंत्रता इत्यादि के संबंध में कुछ अधिकारों के संरक्षण से संबंधित है।
परंतु प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत संरक्षित है, जिसमें कहा गया है – “सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा”।
वर्ष 1950 में, रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव पर प्रेस की स्वतंत्रता पर आधारित होती है।
हालाँकि, प्रेस की स्वतंत्रता भी असीमित नहीं होती है। एक कानून इस अधिकार के प्रयोग पर केवल उन प्रतिबंधों को लागू कर सकता है, जो अनुच्छेद 19 (2) के तहत इस प्रकार हैं-
भारत की संप्रभुता और अखंडता के हितों से संबंधित मामले, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता या न्यायालय की अवमानना के संबंध में, मानहानि या अपराध का प्रोत्साहन।
स्वतंत्र मीडिया का जो महत्त्व है
स्वतंत्र मीडिया विचारों की मुक्त चर्चा को बढ़ावा देता है जो व्यक्तियों को राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने, निर्णय लेने की अनुमति देता है और परिणामस्वरूप समाज को सशक्त करता है – विशेष रूप से भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में
लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिये विचारों का स्वतंत्र आदान-प्रदान, सूचना और ज्ञान का आदान-प्रदान, बहस और विभिन्न दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण होती है। जनता की आवाज़ होने के आधार पर स्वतंत्र मीडिया, उन्हें राय व्यक्त करने के अधिकार के साथ सशक्त बनाता है। इस प्रकार, लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया महत्त्वपूर्ण है।
स्वतंत्र मीडिया के साथ, लोग सरकार के निर्णयों पर प्रश्न करके अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम होते हैं। ऐसा माहौल तभी बनाया जा सकता है जब प्रेस की स्वतंत्रता प्राप्त हो।
अतः मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जा सकता है, अन्य तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं।
वर्तमान में मीडिया से संबंधित मुद्दे निजता का अधिकार प्राकृतिक अधिकारों से उत्पन्न होता है, जो बुनियादी, निहित एवं अपरिहार्य अधिकार होते हैं।
अनुच्छेद 21 जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है, गोपनीयता के अधिकार की भी गारंटी देता है।
कई बार, मीडिया ने निष्पक्ष रिपोर्टिंग की अपनी सीमाएँ पार की हैं और व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप किया है।
आरुषि तलवार हत्या मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि किसी जाँच में पारदर्शिता और गोपनीयता दो अलग-अलग चीजें हैं। जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने मीडिया के एक वर्ग की रिपोर्टिंग पर प्रश्न उठाए जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित और उसके परिवार के सदस्यों की प्रतिष्ठा धूमिल हुई।
मीडिया ट्रायल: सहारा बनाम सेबी (2012) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि अदालत स्वतंत्र ट्रायल और एक स्वतंत्र प्रेस के अधिकार के संतुलन पर निवारक राहत प्रदान कर सकती है।
इसके अलावा, कई बार सर्वोच्च न्यायालय का विचार था कि मीडिया मुद्दों को इस तरह से कवर करता है कि यह एक ट्रायल की तरह लगता है।
चूँकि मीडिया द्वारा इस तरह के ट्रायलों से न्यायपालिका और न्यायिक कार्यवाही की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना होती है, अतः यह न्यायपालिका के कामकाज में भी हस्तक्षेप करता है।
पेड न्यूज़: पेड न्यूज़ और फेक न्यूज़ सार्वजनिक धारणा को तोड़-मरोड़ सकती हैं एवं समाज के अंदर विभिन्न समुदायों के मध्य घृणा, हिंसा, तथा असामंजस्य उत्पन्न कर सकती हैं।
निष्पक्ष पत्रकारिता की अनुपस्थिति एक समाज में सत्य की झूठी प्रस्तुति को जन्म देती है जो लोगों की धारणा और विचारों को प्रभावित करती है।
अब हम यहां चर्चा करेंगे भारतीय प्रेस परिषद, जो एक नियामक संस्था हैं ,मीडिया को चेतावनी दे सकती है और विनियमित कर सकती है अगर यह पाती है कि एक समाचार पत्र या समाचार एजेंसी ने मीडिया नैतिकता का उल्लंघन किया है।
न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) को वैधानिक दर्ज़ा प्रदान किया जाना चाहिये जो निजी टेलीविजन समाचार एवं करंट अफेयर्स ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है।
फेक न्यूज़ से निपटना मीडिया में विश्वास बहाल करने के लिये मीडिया स्वतंत्रता को कम किये बिना मीडिया सामग्री से छेड़छाड़ और फेक न्यूज़ का सामना करने के लिये सार्वजनिक शिक्षा, नियमों को मज़बूत करने तथा प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा न्यूज़ क्यूरेशन हेतु उपयुक्त एल्गोरिदम बनाने के प्रयासों की आवश्यकता होगी।
फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने के भविष्य के किसी भी कानून को पूरी तस्वीर को ध्यान में रखना चाहिये और मीडिया को दोष नहीं देना चाहिये एवं बिना सोचे प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिये; नये मीडिया के इस युग में कोई भी अज्ञात लाभों के लिये खबर बना सकता है और प्रसारित कर सकता है।
मीडिया द्वारा नैतिकता का पालन यह महत्त्वपूर्ण है कि मीडिया सत्यता और सटीकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, औचित्यता एवं निष्पक्षता,उत्तरदायिता जैसे मुख्य सिद्धांतों का पालन करती रहे।
अगर हम निष्कर्ष पर चर्चा करें तो स्वतंत्र अभिव्यक्ति और अन्य समुदाय एवं व्यक्तिगत अधिकारों के मध्य संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है; यह ज़िम्मेदारी केवल न्यायपालिका द्वारा नहीं बल्कि उन सभी लोगों द्वारा वहन की जानी चाहिये जो इन अधिकारों का प्रयोग करते हैं।
उपरोक्त संदर्भ से यह स्पष्ट होता है कि एक मजबूत तरीके से विधि पूर्वक मीडिया को स्वतंत्र एवं सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
उपरोक्त सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है अगर भारतीय संविधान के तहत लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को संवैधानिक दर्जा दिया जाए मीडिया पालिका की स्थापना करके भारतीय मीडिया को भी सशक्त बनाया जा सकता है एवं पारदर्शी तरीके से संचालित किया जा सकता है इसके लिए इस क्षेत्र से जुड़े हुए पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की भी भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए।
राज्य लेवल पर मीडिया कल्याण बोर्ड का गठन करके यह भागीदारी सुनिश्चित कराई जा सकती है।
इसके साथ-साथ पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा मीडिया को पारदर्शी एवं निष्पक्ष बनाए रखने के लिए मान्यता प्राप्त एवं अधिमान्यता पत्रकारों को एक दायरे में लाकर केंद्रीय एवं राज्य कर्मचारी का दर्जा देना होगा और उनके लिए एक मानदेय तय करना आवश्यक हैं, ऐसा करने से पारदर्शी पत्रकारिता को बढ़ावा मिलेगा और लोग पत्रकारिता के महत्व को समझेंगे।
देश में पत्रकारों से जुड़े हुए कुछ और कानून बनाने की आवश्यकता है जैसे पत्रकार सुरक्षा कानून सामाजिक सुरक्षा कानून, पत्रकार आवासीय योजना, बीमा योजना, समुचित चिकित्सा की व्यवस्था, पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के परिवार की सुरक्षा की गारंटी उनके बच्चों के शिक्षा की गारंटी आदि योजनाओं का संचालन बहुत ही आवश्यक एवं अपेक्षित हैं।
यहां हम अपील करेंगे देश के उन सभी पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता बंधुओ से कि उपरोक्त विषय बिंदु पर मंथन करें चिंतन करें और सही निष्कर्ष पर आप पहुंचकर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को पारदर्शी बनाने के लिए निडर एवं निष्पक्ष बनाने के लिए अपनी आवाज को जोरदार तरीके से बुलंद करें अपनी एकता और अखंडता को बनाकर उन सभी कानूनों, योजनाओं को लागू कराएं।
23 अगस्त 2024 को देश की राजधानी नई दिल्ली में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को संवैधानिक दर्जा दिलाने पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के अधिकार सम्मान सुरक्षा एवं उनके अभिव्यक्ति की आजादी के लिए आयोजित अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता सम्मेलन में शामिल होकर अपने महत्वपूर्ण विचारों को रखते हुए सही निष्कर्ष पर पहुंचकर नागरिक पत्रकारिता की स्थापना में अपना योगदान देने का कार्य करें।

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