रिपोर्ट: एके बिन्दुसार (चीफ एडिटर -BMF NEWS NETWORK)
नई दिल्ली। भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक एके बिंदुसार ने यहां केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के द्वारा 2025 एवं 26 के बजट पर प्रकाश डालते हुए समाज चिंतक मनीष दुबे के खास रिपोर्ट को प्रस्तुत किया है।
श्री बिंदुसार ने कहा कि एक बात के दो पहलू होते हैं, एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक।
इसके बाद पत्रकारों के लिए आजाद भारत में अब तक बनी सरकारों के बजट में क्या खास रहा है। मतलब किस सरकार ने पत्रकारों के लिए क्या कुछ किया हैं क्या नहीं किया.. विवरण दिया गया है, साथ में उत्तर प्रदेश में अब तक की सरकारों और उनके द्वारा पत्रकारों के लिए पॉजिटिव और निगेटिव पहलू क्या रहे?
बजट 2025 के नकारात्मक और सकारात्मक पहलू क्या हैं?
आजाद भारत में पत्रकारों को 1 फरवरी 2025 को प्रस्तुत किए गए केंद्रीय बजट 2025-26 के कई सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं।
सकारात्मक पहलू:
मध्यवर्ग के लिए कर राहत: व्यक्तिगत आयकर की निःशुल्क आय सीमा को बढ़ाकर 12 लाख रुपये किया गया है, जिससे मध्यवर्ग की क्रय शक्ति में वृद्धि होगी और उपभोग को बढ़ावा मिलेगा।
निजी निवेश को प्रोत्साहन: सरकार ने निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए विनियामक सुधारों की घोषणा की है, जिससे व्यापार करने में आसानी होगी और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी।
कृषि और ग्रामीण विकास: कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष मिशनों की शुरुआत की गई है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करेंगे।
स्टार्टअप्स और एमएसएमई के लिए समर्थन: स्टार्टअप्स और छोटे उद्योगों के लिए प्रोत्साहन और फंड की व्यवस्था की गई है, जिससे नवाचार और रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।
नकारात्मक पहलू:
आर्थिक वृद्धि पर सीमित प्रभाव: मूडीज के अनुसार, मध्यवर्ग के लिए कर राहत से आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी की संभावना नहीं है। उन्होंने भारत की वृद्धि दर का अनुमान 6.6% पर स्थिर रखा है।
राजकोषीय घाटा: हालांकि सरकार ने राजकोषीय घाटे को 4.4% तक लाने का लक्ष्य रखा है, लेकिन उच्च उधारी और राजस्व में कमी के कारण यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
महंगाई और शहरी मांग: उच्च खाद्य महंगाई और कमजोर शहरी मांग के कारण आर्थिक वृद्धि पर दबाव बना रह सकता है।
बजट 2025-26 में मध्यवर्ग के लिए कर राहत और विभिन्न क्षेत्रों के लिए प्रोत्साहन की घोषणाएँ की गई हैं। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन उपायों का आर्थिक वृद्धि पर सीमित प्रभाव हो सकता है।
अंततः, बजट के प्रभाव का मूल्यांकन इसके कार्यान्वयन और दीर्घकालिक परिणामों के आधार पर किया जाएगा।
इसके बाद पत्रकारों के लिए आजाद भारत में अब तक बनी सरकारों के बजट में क्या खास रहा है। मतलब किस सरकार ने पत्रकारों के लिए क्या कुछ किया है क्या नहीं किया.. विवरण दिया गया है, साथ में उत्तर प्रदेश में अब तक की सरकारों और उनके द्वारा पत्रकारों के लिए पॉजिटिव और निगेटिव पहलू क्या रहे?
आजाद भारत में पत्रकारों को 1 फरवरी 2025 को प्रस्तुत किए गए केंद्रीय बजट 2025-26 के कई सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं।
आजाद भारत में अब तक बनी सरकारों के बजट में पत्रकारों को कितना लाभ मिला?
भारत के केंद्र में अब तक कई सरकारें बनी हैं, लेकिन पत्रकारों के लिए विशेष रूप से किसी बजट में बहुत अधिक योजनाएँ या नीतियाँ नहीं बनाई गई हैं। हालाँकि, कुछ बजटों में पत्रकारों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुँचाने वाले कदम उठाए गए हैं।
मुख्य बजटीय प्रावधान जो पत्रकारों से जुड़े रहे:
आपातकाल के बाद (1977-1980 – जनता पार्टी सरकार)
प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए कुछ प्रयास किए गए, लेकिन कोई विशेष बजटीय घोषणा नहीं हुई।
1980-1989 (इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सरकार)
सरकारी मीडिया संस्थानों को मजबूत करने पर ध्यान दिया गया।
पत्रकारों की सुरक्षा और उनके कल्याण के लिए कोई खास नीति नहीं आई।
1991-1996 (नरसिम्हा राव सरकार – आर्थिक उदारीकरण का दौर)
निजी समाचार चैनलों और प्रिंट मीडिया को अधिक स्वतंत्रता मिली।
प्रेस को सरकारी नियंत्रण से बाहर लाने और विज्ञापन नीति में बदलाव लाने पर ध्यान दिया गया।
1998-2004 (अटल बिहारी वाजपेयी सरकार – NDA)
पत्रकारों को स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधाएँ देने के सुझाव दिए गए लेकिन कोई ठोस योजना लागू नहीं हुई।
डिजिटल मीडिया की नींव रखी गई, जिससे पत्रकारिता में नए अवसर पैदा हुए।
2004-2014 (मनमोहन सिंह सरकार – UPA-1 और UPA-2)
2010 में ‘पत्रकार कल्याण योजना’ शुरू की गई, जिसमें दिवंगत पत्रकारों के परिजनों को आर्थिक सहायता दी जाने लगी।
मीडिया संस्थानों के लिए टैक्स में कुछ रियायतें दी गईं।
डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विस्तार को बढ़ावा मिला।
2014-2024 (नरेंद्र मोदी सरकार – NDA-2 और NDA-3)
2018 में पत्रकारों के लिए पेंशन और बीमा योजना की घोषणा हुई, लेकिन इसका सीमित दायरा रहा।
2022 के बजट में डिजिटल मीडिया स्टार्टअप्स को सहायता देने की बात हुई।
‘पत्रकार कल्याण योजना’ के तहत सहायता राशि को बढ़ाया गया।
सरकार की नीतियों में डिजिटल और सोशल मीडिया पर जोर दिया गया, जिससे नए मीडिया प्लेटफार्मों का विकास हुआ।
पत्रकारों के लिए कोई सीधी वित्तीय सहायता नहीं दी गई।
सरकार द्वारा संचालित मीडिया संस्थानों (जैसे दूरदर्शन और आकाशवाणी) को बजटीय सहायता दी जाती रही।
पत्रकारों के लिए स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और सुरक्षा योजनाएँ सीमित दायरे में लागू की गईं।
डिजिटल मीडिया को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाएँ बनीं, जिससे पत्रकारिता के नए अवसर बढ़े।
हालांकि, अब भी स्वतंत्र पत्रकारों और छोटे मीडिया संगठनों के लिए सीधी सरकारी सहायता की कमी बनी हुई है।
आपातकाल के बाद (1977-1980 – जनता पार्टी सरकार)
प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए कुछ प्रयास किए गए, लेकिन कोई विशेष बजटीय घोषणा नहीं हुई।
1980-1989 (इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सरकार)
सरकारी मीडिया संस्थानों को मजबूत करने पर ध्यान दिया गया।
पत्रकारों की सुरक्षा और उनके कल्याण के लिए कोई खास नीति नहीं आई।
1991-1996 (नरसिम्हा राव सरकार – आर्थिक उदारीकरण का दौर)
निजी समाचार चैनलों और प्रिंट मीडिया को अधिक स्वतंत्रता मिली।
प्रेस को सरकारी नियंत्रण से बाहर लाने और विज्ञापन नीति में बदलाव लाने पर ध्यान दिया गया।
1998-2004 (अटल बिहारी वाजपेयी सरकार – NDA)
पत्रकारों को स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधाएँ देने के सुझाव दिए गए लेकिन कोई ठोस योजना लागू नहीं हुई।
डिजिटल मीडिया की नींव रखी गई, जिससे पत्रकारिता में नए अवसर पैदा हुए।
2004-2014 (मनमोहन सिंह सरकार – UPA-1 और UPA-2)
2010 में ‘पत्रकार कल्याण योजना’ शुरू की गई, जिसमें दिवंगत पत्रकारों के परिजनों को आर्थिक सहायता दी जाने लगी।
मीडिया संस्थानों के लिए टैक्स में कुछ रियायतें दी गईं।
डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विस्तार को बढ़ावा मिला।
2014-2024 (नरेंद्र मोदी सरकार – NDA-2 और NDA-3)
2018 में पत्रकारों के लिए पेंशन और बीमा योजना की घोषणा हुई, लेकिन इसका सीमित दायरा रहा।
2022 के बजट में डिजिटल मीडिया स्टार्टअप्स को सहायता देने की बात हुई।
‘पत्रकार कल्याण योजना’ के तहत सहायता राशि को बढ़ाया गया।
सरकार की नीतियों में डिजिटल और सोशल मीडिया पर जोर दिया गया, जिससे नए मीडिया प्लेटफार्मों का विकास हुआ।
अब तक पत्रकारों के लिए बजट में क्या मुख्य बातें रही?
पत्रकारों के लिए कोई सीधी वित्तीय सहायता नहीं दी गई।
सरकार द्वारा संचालित मीडिया संस्थानों (जैसे दूरदर्शन और आकाशवाणी) को बजटीय सहायता दी जाती रही।
पत्रकारों के लिए स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और सुरक्षा योजनाएँ सीमित दायरे में लागू की गईं।
डिजिटल मीडिया को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाएँ बनीं, जिससे पत्रकारिता के नए अवसर बढ़े।
हालांकि, अब भी स्वतंत्र पत्रकारों और छोटे मीडिया संगठनों के लिए सीधी सरकारी सहायता की कमी बनी हुई है।
उत्तर प्रदेश राज्य बनने के बाद कितनी सरकारों के बजट में पत्रकारों को लाभ दिया गया?
उत्तर प्रदेश में अब तक कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन पत्रकारों को लाभ देने की दृष्टि से सभी सरकारों की नीतियाँ समान नहीं रहीं। कुछ सरकारों ने पत्रकारों के लिए लाभकारी योजनाएँ लागू कीं, जबकि कुछ सरकारों में पत्रकारों को लेकर उदासीनता देखी गई। यहाँ उत्तर प्रदेश की प्रमुख सरकारों द्वारा पत्रकारों के लिए किए गए कार्यों के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू दिए जा रहे हैं:
गोविंद बल्लभ पंत (1950-1954) और शुरुआती सरकारें
सकारात्मक:
स्वतंत्रता के बाद प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए शुरुआती नीतियाँ बनीं।
नकारात्मक:
इस दौर में पत्रकारों के लिए कोई विशेष आर्थिक या सामाजिक लाभ की योजना नहीं थी।
चौधरी चरण सिंह (1967-1968, 1970)
सकारात्मक:
प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने पर जोर दिया।
प्रेस के खिलाफ सरकारी दमन को कम करने की कोशिश की।
नकारात्मक:
पत्रकारों के लिए किसी विशेष आर्थिक सहायता योजना की शुरुआत नहीं हुई।
हेमवती नंदन बहुगुणा (1973-1975)
सकारात्मक:
आपातकाल से पहले पत्रकारों के अधिकारों को लेकर सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाया।
नकारात्मक:
इस दौर में भी पत्रकारों को सीधी आर्थिक सहायता देने की कोई ठोस योजना नहीं बनी।
वीर बहादुर सिंह (1985-1988)
सकारात्मक:
पत्रकारों को सरकारी योजनाओं से जोड़ने की पहल हुई।
नकारात्मक:
पत्रकारों के लिए कोई स्थायी योजना लागू नहीं की गई।
मुलायम सिंह यादव (1989-1991, 1993-1995, 2003-2007)
सकारात्मक:
वरिष्ठ पत्रकारों के लिए पत्रकार पेंशन योजना शुरू की।
प्रेस की स्वतंत्रता के पक्ष में कई निर्णय लिए।
पत्रकारों को आवास योजनाओं में शामिल किया।
नकारात्मक:
सरकार के खिलाफ लिखने वाले पत्रकारों पर दबाव की शिकायतें आईं।
पेंशन योजनाओं के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार के आरोप लगे।
कल्याण सिंह (1991-1992, 1997-1999)
सकारात्मक:
पत्रकारों को सुरक्षा देने की पहल की गई।
आपातकाल जैसी परिस्थितियों से बचाने के लिए नीतियाँ बनाई गईं।
नकारात्मक:
आर्थिक योजनाओं की स्पष्ट रूप से कमी रही।
मायावती (1995, 1997, 2002-2003, 2007-2012)
सकारात्मक:
पत्रकारों के लिए कुछ कल्याणकारी योजनाएँ लागू की गईं।
दलित और वंचित पत्रकारों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।
नकारात्मक:
मीडिया पर दबाव बनाने के आरोप लगे।
कई पत्रकारों को सरकारी दबाव झेलना पड़ा।
राजनाथ सिंह (2000-2002)
सकारात्मक:
पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कुछ सकारात्मक पहल की।
नकारात्मक:
कोई बड़ी आर्थिक योजना लागू नहीं की गई।
अखिलेश यादव (2012-2017)
सकारात्मक:
पत्रकारों के लिए समाजवादी पत्रकार पेंशन योजना लागू की गई।
पत्रकारों के बीमा के लिए योजनाएँ बनीं।
नकारात्मक:
कुछ पत्रकारों पर राजनीतिक दबाव की शिकायतें आईं।
योगी आदित्यनाथ (2017-वर्तमान)
सकारात्मक:
पत्रकारों के लिए बीमा योजना लागू की गई।
कोविड-19 महामारी के दौरान पत्रकारों को विशेष सहायता दी गई।
डिजिटल मीडिया को भी मुख्यधारा में लाने की पहल की गई।
नकारात्मक:
सरकार विरोधी पत्रकारों पर कानूनी कार्रवाई के आरोप लगे।
कई पत्रकारों की गिरफ्तारी और धमकियों की घटनाएँ सामने आईं।
निष्कर्ष- उत्तर प्रदेश में पत्रकारों को लाभ देने की शुरुआत मुख्य रूप से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के कार्यकाल में हुई। योगी आदित्यनाथ सरकार ने भी कुछ योजनाएँ शुरू कीं, लेकिन कई सरकारों में पत्रकारों को दबाव और दमन का सामना भी करना पड़ा।