रिपोर्ट: राजेश कुमार शास्त्री (सिद्धार्थनगर)
सिद्धार्थनगर। मार्गशीर्ष के पावन महीने के शुभ अवसर पर पौराणिक एवं ऐतिहासिक विख्यात तीर्थस्थल जिगना धाम में रामविवाह उत्सव आयोजित होगा । यह धाम तहसील मुख्यालय इटवा के उत्तर दिशा में खानकोट सोमरी से दोपेड़वा वाले रोड पर स्थित है ।
इस अवसर पर एक बड़ा मेला लगता है। जो सप्ताह भर चलता है। इसमें क्षेत्र सहित दूर दराज के श्रद्धालुओं के अलावा नेपाल राष्ट्र के तराई क्षेत्र के लोग भी यहॉं आते हैं। यह दो देशों के भाइचारे को स्थापित करता है। मेले में दूर-दूर के व्यापारी, सर्कस, थिएटर आदि आते हैं। यह मेला आज भी राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता का प्रतीक है।जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण यही है कि यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान का दर्शन कर आशीर्वाद तो प्राप्त करते ही हैं, साथ में महंत बाबा विजय दास के उदार हृदय और आदर सत्कार से प्रभावित हुए बिना नहीं जाते है। यहॉं की यही सच्ची मानवता है।
*जिगना धाम का प्रामाणिक इतिहास*
बाबा रामकिशोर दास ने बताया था कि 13 वीं सदी ईस्वी में अलाउद्दीन बादशाह के शासनकाल में यहां के महंत बाबा विष्णुदत्त थे, जो मूर्ति से वार्तालाप करते थे। इस बात की चर्चा दूर दूर तक फैली हुई थी। यही बात जब अलाउद्दीन बादशाह ने सुना तो वह अपनी सेनाओं सहित महंत और मूर्ति की वार्तालाप सुनने के लिए जिगना धाम पहुंचा और महंत जी से कहा कि आप मेरे सामने मूर्ति से वार्तालाप कीजिए।
महंत विष्णु दत्त ने मूर्ति से बातचीत करने के लिए कई बार उस को पुकारा परन्तु कोई आवाज नहीं आई। लेकिन जब आठवें बार उन्होंने कहा कि “मौन भयो बोलत केस नाहीं” तब मूर्ति से आवाज आई कि अब तू गूंगा हो जाएगा। क्योंकि अब मुझे आम आदमी के सामने बोलने पर मजबूर न होना पड़े। वह बेचारे जमीन पर गिर पड़े और उनकी जबान निकल आई।
इस वार्तालाप को देखकर अलाउद्दीन बादशाह ने 84 बीघा की बाउंड्री, 84 गांव और मंदिर को माफी दिया। 365 रुपया 50 पैसा की स्वर्ण मुद्रा प्रत्येक वर्ष मंदिर को देने का आदेश दिया। जो कि अंग्रेज शासन काल तक मिलता रहा। इसका रिकॉर्ड अब बस्ती मण्डल पुराना जिला बस्ती के रिकॉर्ड रूम में पत्रावली संख्या 4 पर दर्ज है।
आज मंदिर के पास मात्र एक बाग और 90 बीघा की जमीन बची है। इस को सरकार से कुछ मिलने के बजाए उल्टे लगान भी देना पड़ रहा है। इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए सरकार की तरफ से कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया।
*जिगना धाम के महंत बाबा विजय कुमार दास* ने बताया कि पर्यटन निधि से फर्श इत्यादि बनाया गया है जो ऊंट के मुंह में जीरा है। अब तक यह सरकारी उपेक्षा का शिकार रहा है। मन्दिर की अस्मर्थता और सरकारी सहयोग न मिलने के कारण शुलभ शोचालय और धर्मशाला इत्यादि का निर्माण नहीं हो पाया है।महन्त नें वर्तमान भाजपा सरकार तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी जी महाराज खुद एक मठाधीश हैं, जिनसे इसके उद्धार की आशा है।
*विख्यात तीर्थस्थल जिगना धाम की प्राचीनता*
इस ऐतिहासिक धरोहर की देखरेख भरद्वाज महंतों को उत्तराधिकार में मिलता रहा है। इसका कोई न्यास या कमेटी अब तक नहीं बना है। आज तक इस मंदिर की सेवा अनगिनत महंत कर चुके हैं। जिसका सबूत यहां की समाधियां बता रही है।
समाधियों के पास कई सौ साल से खड़ा बट वृक्ष इसका इतिहास बता रहा है। इस वृक्ष के ठीक पूरब दिशा में एक सूर्यकुंड है। इस पर एक सुंदर घाट बना है। जिस पर लोग स्नान करते और जल चढ़ाते हैं। मंदिर के बगल में एक प्राचीन कुआं भी है जिसका स्थान आज इंडिया मार्का हैंडपम्प ने ले लिया है।क्योंकि अब इसके जल का प्रयोग बंद है। सुंदर बागों से घिरे इस ऐतिहासिक धरोहर पर प्रत्येक वर्ष अगहन शुक्ल पक्ष पंचमी को राम विवाह उत्सव का आयोजन होता है।