- भारतीय मीडिया फाउंडेशन सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक आजादी की महा क्रांति चाहता है पत्रकारिता के बल पर विश्व शांति चाहता हैं।
- एके बिंदुसार (संस्थापक) भारतीय मीडिया फाउंडेशन
पत्रकारिता के अंतर्गत मानव जीवन की विविधताओं तथा नित्य घटित होने वाली घटनाओं का संकलन, विवरण और विवेचना जनसंचार के माध्यमों द्वारा जनता तक पहुंचाने की सभी गतिविधियां आती हैं।
यूं कह सकते हैं कि विचारों को जनता तक पहुंचाने का माध्यम पत्रकारिता है।
आज पत्रकारिता पाठकों को सूचना, शिक्षा और मनोरंजन देने के साथ जनसेवा का सशक्त माध्यम बन गई है।
उदाहरण स्वरूप…………….
श्री रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर के शब्दों में — ” ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरों तक पहुंचाना ही पत्रकला है । छपने वाले लेख-समाचार तैयार करना ही पत्रकारिता है । आकर्षक शीर्षक देना, पृष्ठों का आकर्षक बनाव-ठनाव, जल्दी से जल्दी समाचार देने की तत्परता, देश-विदेश के प्रमुख उद्योग-धन्धो के विज्ञापन प्राप्त करने की चतुरा, सुन्दर छपा और पाठक के हाथ में सबसे जल्दी पत्र पहुंचा देने की तत्परता, ये सब पत्रकार कला के अंतर्गत रखे गए हैं ।”
डॉ. शंकरदयाल शर्मा के शब्दों में— “पत्रकारिता एक पेशा नहीं है बल्कि यह तो जनता की सेवा का माध्यम है । पत्रकारो को केवल घटनाओं का विवरण ही पेश नहीं करना चाहिए, आम जनता के समक्ष उसका विश्लेषण भी करना चाहिए । पत्रकारों पर लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने और शांति एवं भाईचारा बनाए रखने की जिम्मेदारी भी आती है ।”
हम देखते हैं कि पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ यूं ही नहीं कहा गया है। भारत में पत्रकारिता पहले मिशन के रूप में थी। इसका लक्ष्य लोककल्याण ही रहा। समाज को जागृत करने के साथ दिशा निर्देशन का भी दायित्व पत्रकारिता ने बखूबी निभाया।
आज इसमें व्यावसायिकता आ गई है।आर्थिक उदारीकरण का प्रभाव भी पत्रकारिता पर खूब पड़ा है। विज्ञापनों से होनेवाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को एक व्यवसाय बना दिया है। इसी व्यावसायिक दृष्टिकोण का परिणाम है कि उसका ध्यान सामाजिक जिम्मेदारियों से कहीं दूर भटक गया है। आज पत्रकारिता मुद्दा आधारित होने के बजाय सूचना आधारित हो गई है।
इंटरनेट एवं सोशल मीडिया की व्यापकता के चलते उस तक सार्वजनिक पहुंच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इसके कुछ उपयोगकर्ता निजी भड़ास निकालने और आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस माध्यम का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं।
बाजारवाद की आंधी में पत्रकारिता के मूल्य धूमिल होते जा रहे हैं।
पीत पत्रकारिता( yellow journalism)— मूल सिद्धांतों को ताक पर रखकर की जाने वाली पत्रकारिता ही पीत पत्रकारिता है। इसके दायरे में पत्रकारिता के दौरान की जाने वाली निम्न गतिविधियां आती हैं।
· किसी समाचार या विचार का प्रकाशन/ प्रसारण पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर करना।
· किसी समाचार या विचार को बढ़ा- चढ़ाकर पेश करना।
· किसी समाचार या विचार का प्रस्तुतीकरण सनसनीखेज तरीके से करना
फीचर के रूप में चटपटी, मसालेदार और मनगढ़ंत कहानियों को पेश करना।
· मानसिक और शारीरिक उत्तेजना को बढ़ावा देने वाले चित्रों और कार्टूनों का प्रकाशन/ प्रसारण।
· समाज के अहम मुद्दों को दरकिनार कर अपराध और सिनेमा से जुड़ी गतिविधियों का सनसनीखेज प्रस्तुतीकरण।
· राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व वाले समूह से प्रभावित होकर पत्रकारिता करना।
आज के दौर में पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। ज्यादातर समाचार संगठन आगे निकलने की होड़ में पत्रकारिता के सिद्धांतों की अनदेखी कर रहे हैं। यही वजह है कि पीत पत्रकारिता धीरे–धीरे अपना दायरा बढ़ाती जा रही है।
श्वेत पत्रकारिता(White Journalism) : श्वेत पत्रकारिता हमारे देश से सम्बंध नहीं रखती । जिन देशों में कभी विभिन्न वर्णों के समुदाय थे, उन्हीं देशों में यह शब्द माने रखता है ।
इसे पीत पत्रकारिता का ही एक रूप कह सकते हैं ,जहाँ विचार समुदाय के त्वचा के रंगों से प्रभावित होते हैं । और समाचारों में वर्ग विशेष के प्रति भेद भावना प्रच्छन्न रहते हुए भी स्पष्ट दिखती है।
जैसे: एक समाचार ” अश्वेत समुदाय के लोगों ने अनाज की दुकान लूट ली ।”
दूसरा समाचार ” क्षुधा पीड़ित लोगों ने अनाज की दुकान लूट ली ”
दोनों समाचार एक ही तस्वीर दिखाते हैं —
परन्तु शब्दों का लहजा बयान कर देता है कि कौन सा समाचार श्वेत पत्रकारिता के अंतर्गत आता है।
इसलिए हमारे परम मित्रों भारतीय मीडिया फाउंडेशन की जो पत्रकारिता है वह इस देश में नागरिक पत्रकारिता की स्थापना करके पीत पत्रकारिता के उस काले अध्याय को समाप्त करना चाहता है।
जय हिंद!!