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इस बीमार शहर को कभी हकीम नहीं मिले– जिसे भी देखो एक से बढ़ कर एक मिले–

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रिपोर्ट: निशा कांत शर्मा 

एटा। एक तो शहर बदहाल ऊपर से जिम्मेदारों का गैर जिम्मेदाराना जबाव हैरान करने बाला है प्रतिदिन कूड़ा उठाया जा रहा है कर्मचारियों को सारी सुविधाएं दे रखी है चेयरमैन साहिबा आदरणीय सुधार गुप्ता जी कम से कम इस बयान से पहले आप शहर का एक चक्कर लगा लेती तो शायद अपनी व्बस्थाऔ पर इतना हल्का आपका यह जवाब नहीं होता आज बदहाल शहर पानी, हो या कूड़ा झाड़ू हो या रूटीन वे–आपका काम शून्य पड़ा हुआ है न झाड़ू न कूड़ा उठ रहा है सड़कों,से दरवाजों पर पड़ी गंदगी खुली आंखों से देखी जा सकती है लट्ठों की लाइटें चार दिन नहीं जलती है और बंद पड़ी रहती हैं क्योंकि पुराने जॉइंट जैसे ही जोड़ कर जाते हैं बो टूट जाते हैं आज शहर के हालात इतने बुरे हैं कि शायद ही कभी रहे हों जरा सी बारिश में शहर पानी पानी हो जाता है ऊपर से एटा का विकास कुछ इस तरह से हो रहा है कि जो अपने अपने दरवाजों के सामने सबने सड़कें सही करा रखी थी बो भी कहीं सीवर तो कहीं गेस लाइन ने नर्क बना रखा है गड्ढे खोद खोद कर एसे ही खुले छोड़ जाते हैं पर इसके ठेकेदार और शासन प्रशासन के एजेंडे क्या है पता नहीं पर पब्लिक कराहने जरूर लगी है,आजकल संचारी रोगों से पब्लिक परेशान हैं एसे रोगो को एक साफ स्वक्ष माहोल देना जरूरी था लेकिन शहर खुद बीमार है तब सवाल सीधे तौर पर पब्लिक की जुबानी होना चाहिए कि इसका जिम्मेदार कौन है और कब-तक ये दुर्दशा का माहौल बना रहेगा।

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