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बढ़ती गर्मी व लू के भीषण कहर से बेहाल दुनिया — ज्ञानेन्द्र रावत

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रिपोर्ट: निशा कांत शर्मा (एटा)
एटा ! पर्यावरण विद् ज्ञानेन्द्र रावत ने कहा है कि आजकल नौतपा के कहर और लू की भयावहता से सर्वत्र त्राहि- त्राहि मची है। दरअसल नौतपा साल के सबसे गरम नौ दिनों को कहते हैं जिसका समय 25 मई से शुरू होकर 2 जून तक माना जाता है। इस दौरान सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं जिससे प्रचंड गर्मी पड़ती है। इस भीषण गर्मी के चलते जहां लोग हाय-हाय कर रहे हैं, वहीं हजारों-लाखों लोग गर्मी जनित बीमारियों की चपेट में आकर मौत के मुंह में जा रहे हैं। और लू जिसे हीटवेव भी कहते हैं, उसकी तीव्रता और घातकता में दिन-ब-दिन तेजी से बढ़ोतरी हो रही है जिससे हर साल दुनिया भर में 1.53 लाख से ज्यादा लोग अनचाहे मौत के मुंह में चले जाते हैं। जहां तक नौतपा का सवाल है, बीते 12 सालों में इस दौरान सबसे ज्यादा औसत तापमान 2018 में 43.8 डिग्री सेल्सियस रहा है। लगता है इस बार यह रिकार्ड भी टूटेगा। इस बार यह जून के दूसरे हफ्ते तक रहने की संभावना व्यक्त की गई है। असल में धरती का तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है वह समूची दुनिया के लिए ख़तरनाक संकेत है। यह भी कि तापमान में बढ़ोतरी नित नए-नये कीर्तिमान बना रही है। बीते नौ सालों ने तो धरती के सर्वाधिक गर्म होने का रिकार्ड कायम किया है। फिर यह कि साल दर साल तापमान में बढ़ोतरी के रिकार्ड ध्वस्त हो रहे हैं। चिंता इस बात की है कि भविष्य में इस पर अंकुश की कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती। कारण तापमान को नियंत्रित करने के सारे प्रयासों का अभी तक नाकाम साबित होना है। दुनिया के शोध और अध्ययन भी इसका खुलासा करते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी के बिना बेतहाशा बढ़ती गर्मी पर अंकुश की फिलहाल उम्मीद ही बेमानी है।
आजकल देश का बड़ा हिस्सा झुलसा देने वाली गर्मी की भीषण चपेट में हैं। इसकी मार से पहाड़ से लेकर मैदान तक सब जल रहे हैं। गर्मी ने सारा जन जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है और लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। गर्मी का आलम यह है कि राजस्थान के जैसलमेर में पारा 55 डिग्री को पार कर गया है। दिल्ली में पारे ने 80 साल और पंजाब में 46 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। गर्मी का आलम यह है कि रेत में पापड़ सेंके जा रहे हैं, सड़क पर कड़ाही में पूडि़यां सेंकी जा रही हैं और जैसलमेर में रेत में अंडा पक रहा है। कानपुर में ट्राँसफार्मर फुंक रहे हैं। चंडीगढ़ में उन्हें जलने से बचाने के लिए कूलर लगाने पड़ रहे हैं। गोरखपुर में हीटवेव को लेकर अलर्ट जारी किया गया है तो अस्पतालों में हीटस्ट्रोक के मामलों की बाड़ आ गयी है। देश की राजधानी दिल्ली में तो आज से 79 बरस पहले 17 जून 1945 में अधिकतम तापमान 46.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था जबकि इस बार दिल्ली के मुंगेशपुर इलाके में पारा 52.9 डिग्री तक पहुंच गया है। भीषण गर्मी में उतर प्रदेश में अभी तक 50 लोगों की मौत हो चुकी है। बिहार में 75, झारखंड में 23 और राजस्थान में सात दिनों में कुल 56 लोग मौत के मुंह में चले गये हैं। मौसम विज्ञान विभाग ने तो भीषण गर्मी की मार झेल रहे उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली आदि राज्यों के लिए रेड अलर्ट जबकि बिहार और मध्य प्रदेश के लिए यलो अलर्ट जारी किया है। मौसम विज्ञान विभाग ने तो लोगों को गर्मी से बचने और शरीर में पानी की कमी होने से बचने की सलाह दी है। डाक्टर दिन में कम से कम आठ से दस गिलास पानी पीने की सलाह दे रहे हैं।
बर्लिन स्थित मर्केटर रिसर्च इंस्टीट्यूट इन ग्लोबल कामंस एण्ड क्लाइमेट चेंज का अध्ययन तो यही संकेत देता है कि आने वाले दिनों में तापमान में कमी की उम्मीद ही बेमानी है। अध्ययन के अनुसार धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के प्रयास बेहद कठिन हैं। इस बारे में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उल्फ बंटगेन का मानना है कि तापमान का इस तरह बढ़ना तब तक जारी रहेगा जब तक कि हम ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी नहीं करते। कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं का दावा है कि इस साल गर्मी में तापमान फिर रिकार्ड तोड़ेगा। सिडनी विश्व विद्यालय के अध्ययन की मानें तो धरती के गर्म होने के पीछे मंगल ग्रह का गुरुत्वाकर्षण बल है जो हर 24 लाख वर्ष में धरती को सूर्य की ओर खींचता है। इससे धरती पर सौर ऊर्जा में वृद्धि होने से मौसम और गर्म हो जाता है। धरती से मंगल की दूरी 22.5 करोड़ किलोमीटर है। परन्तु धरती और मंगल के बीच खींचने और धकेलने की प्रक्रिया जारी रहती है जिससे धरती की जलवायु प्रभावित होती है। चूंकि ग्रह अपनी कक्षा में दीर्घ वृत्ताकार रूप में घूमते हैं। इस कारण दोनों ग्रह जब एक-दूसरे के नजदीक पहुंचते हैं, तब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है। अभी तक यह माना जाता था कि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण समुद्र में ज्वार-भाटा आता है, पर नये अध्ययन से साफ हो गया है कि मंगल भी धरती को प्रभावित करता है। इससे धरती ही नहीं, महासागर भी गर्म होते हैं।
जर्मन और स्विस वैज्ञानिक बढ़ते तापमान के लिए सागर के नीचे दबी मीथेन को बड़ा कारण मानते हैं। नयी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है कि 1945 में अरब सागर में 8.1 तीव्रता का एक बड़ा भूकंप आया था। उस समय समुद्र तल के नीचे नएसंट लिए नामक जगह पर गैस का विशाल भंडार था जिसमें भूकंप से विस्फोट हुआ था। तब से लेकर अबतक तकरीब 74 लाख घनमीटर मीथेन बाहर निकली है। ब्रेमन यूनीवर्सिटी के डेविड फिशर की मानें तो अध्ययन में इस बात का पता चला है कि भूकंप से तलछट अलग हो गई जिससे नीचे फंसी मीथेन समुद्र में आ गयी। नेचर पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वी साइबेरियाई सागर के तट से 50 अरब टन मीथेन लीक हुयी है। यह इलाका आर्कटिक महासागर का हिस्सा है और ग्लोबल वार्मिग का सबसे ज़्यादा असर अब तक यहीं पर हुआ है।
वैस्टर्न आस्ट्रेलिया यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक धरती के गर्म होने की रफ़्तार अनुमान से भी कहीं ज्यादा है। क्योंकि धरती 1.7 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी है जो संयुक्त राष्ट्र के मानक तापमान के अनुमान से भी आधा डिग्री अधिक है। वैज्ञानिकों की चिंता यह भी है कि यदि साल के अंत में तापमान में गिरावट नहीं हुयी तो यह ग्रह किस दिशा में जायेगा,यह कहना बहुत मुश्किल है। धरती के तापमान में बढ़ोतरी के कारणों में ग्लोबल वार्मिग तो एक कारण है ही, अलनीनो भी एक बड़ा कारण है। इसके साथ ग्रीन हाउस गैसों, कार्बन डाइऑक्साइड का सतत उत्सर्जन, सल्फर डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा, वनों के तेजी से होते विनाश, कार्बन फ्लोरो कार्बन गैसों का सतत उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन का दहन आदि की भी अहम भूमिका है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। बहरहाल वैज्ञानिक इस बारे में एकमत हैं कि धरती के बढ़ते तापमान को रोकने का प्रभावी तरीका ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करना है।

अमेरिका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया विश्वविद्यालय के विज्ञानियों के मुताबिक सदी के अंत तक अत्याधिक गर्मी से 1.5 करोड़ लोगों की मौत हो जायेगी। पिछले कुछ वर्षो में हीटवेव ने लगभग दुनिया के हर महाद्वीप को प्रभावित किया है। इससे जंगल में आग लगने से हजारों लोगों की जान चली गयी है। वहीं योरोप में 60 हजार से अधिक लोगों की जान चली गयी। दुनिया के जलवायु विशेषज्ञों के सर्वे की मानें तो‌ वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ेगा। ऐसा होने पर बाढ़, विनाशकारी गर्मी और तूफ़ान आयेंगे। इस बारे में फ्रांस के आईडीडीआई नीति अनुसंधान संस्थान के डाo हेनरी वाइसमैन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन में डिग्री का हर दसवां हिस्सा बहुत मायने रखता है। उस स्थिति में जब आप सामाजिक आर्थिक प्रभावों को देखते हैं। तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने पर हीटवेव और तूफ़ान की तीव्रता में तेजी आयेगी। और अगर तापमान तीन डिग्री तक पहुंचा तो दुनिया के कई शहर समुद्र में डूब जायेंगे। हिंद महासागर का तापमान भी बढ़ रहा है। उसका गर्म होना सिर्फ सतह तक सीमित नहीं है, बल्कि समुद्र में गर्मी का भंडार भी तेजी से बढ़ रहा है। इससे चक्रवात और भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ेंगीं। समुद्र का पानी असामान्य रूप से गर्म होगा। इससे वायुमंडल गर्म होगा। समुद्री जैव विविधता और मछलियों पर खतरा बढे़गा। चिंताजनक बात यह है कि समुद्र के अमलीकरण में तेजी आयेगी। इससे मूंगे की चट्टानों, खोल वाले जीवों सहित समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और बड़े पैमाने पर जीवों के आवास का खात्मा हो जायेगा।

पृथ्वी आयोग और नानजिंग यूनीवर्सिटी के सहयोग से यूनिवर्सिटी आफ एक्सेटर इंस्टीट्यूट फार ग्लोबल सिस्टम
यूके के शोध में खुलासा हुआ है कि बढ़ती गर्मी के कारण दुनिया में दो अरब तथा भारत में साठ करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। समूची दुनिया की 22 से 39 फीसदी आबादी गर्मी के दुष्प्रभाव झेलेगी। यदि तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है तो अत्याधिक गर्मी के संपर्क में आने से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। जबकि 6 करोड़ लोग पहले ही खतरनाक गर्मी के संपर्क में हैं। उस स्थिति में यह आंकड़ा काफी बढ़ जायेगा।
एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि अगले कुछ दशकों में करोड़ों लोग इतने अधिक तापमान का सामना करेंगे जो अभी तक केवल सहारा जैसे गर्म मरुस्थल में अनुभव किया जाता रहा है । इस दशक के अंत तक 29 डिग्री सेल्सियस से ऊपर औसत वार्षिक तापमान पहुंच जायेगा। उस समय तकरीब दो अरब लोगों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा। इससे हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क और गुर्दे के साथ दिमाग और हार्मोनल प्रणाली भी प्रभावित हो सकती है। यह समय पूर्व मृत्यु और विकलांगता का कारण हो सकता है। जबकि अत्याधिक तापमान के कारण हर साल 50 लाख से ज़्यादा लोग अनचाहे मौत के मुंह में चले जाते हैं। तापमान में बढ़ोतरी के चलते वाष्पीकरण की दर में वृद्धि होने और इससे मिट्टी की नमी कम होने से कई क्षेत्र सूखे का सामना करेंगे। नतीजतन फसलों की पैदावार में कमी आने से खाद्य असुरक्षा, गरीबी, बेरोजगारी और बाढ़ का खतरा बढ़ेगा। जलाशयों में पानी का भंडारण कम होने और भूजल का स्तर गिरते जाने से जल संकट गहरायेगा। इसलिए जरूरी है कि हम सतर्क रहें, सादा जीवन जियें और इस हेतु दूसरों को प्रेरित करें।‌ अधिकाधिक वृक्षारोपण करें, प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करें। यह जान लें कि प्लास्टिक का उत्पादन नहीं घटा तो तापमान और बढ़ेगा। अक्षय ऊर्जा को प्रमुखता देनी होगी और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा। सबसे बड़ी बात कि हमें प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करना होगा। उसकी रक्षा जीवन का ध्येय बनाना होगा और प्रकृति प्रदत्त संसाधनों की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहना होगा। तभी धरती बची रह पायेगी।

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