श्री हरि विष्णु में आस्था और प्रेम का प्रतीक पर्व है होली–ज्ञानेन्द्र रावत

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श्री हरि विष्णु में आस्था और प्रेम का प्रतीक पर्व है होली–ज्ञानेन्द्र रावत
वैर, अनास्था, दुर्भावना और घृणा की प्रतीक तथा वरदानी होलिका कि वह आग में भस्म नहीं होगी, का दहन और प्रभु श्री हरि विष्णु में अटूट आस्था, प्रेम के प्रतीक भक्त प्रह्लाद का अक्षुण्ण रहना या यों कहें कि उनकी विजय के उल्लास में मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का सबसे प्राचीन और विशेष पर्व है होली। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, ख्यात पर्यावरणविद एवं इंडियन ट्राइबल सोसाइटी कम्यूनिकेशन सिस्टम रिसर्चर सेंटर के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ज्ञानेन्द्र रावत का। उनके अनुसार यह पर्व वर्तमान में अकेले भारत में ही नहीं, कमोबेश समूची विश्व में मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है। इस अवसर पर आपसी सौहार्द प्रदर्शित करने के उद्देश्य से एक-दूसरे पर अबीर-गुलाल लगाते हैं। साथ ही यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन के उल्लास और आनंद का पर्व भी है। इसी के आलोक में हर्षातिरेक में इस पर्व को लोग अपने मतभेद भुलाकर, एक-दूसरे से गले मिलकर, रंगों से सराबोर करते हैं, लोकगीत, नृत्य और ढोल-नगाडो़ं के साथ फाग गाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। असलियत में यह सामाजिक एकता का प्रतीक पर्व है।
इसलिए इस पर्व की महत्ता एवं विशिष्टता को बनाये रखने हेतु राग-रंग से परे होकर प्राकृतिक रंगों से, टेसू के फूलों से, फूलों से,चमेली,गुलाब और सूरजमुखी की पंखुड़ियों से तैयार रंगों से होली खेलें। ये रंग कुदरत तौर पर जहां सुगंधित होते हैं, वहीं त्वचा पर भी दुष्प्रभाव नहीं डालते हैं। ये रंग वातावरण को और प्रभावी तथा आनंददायक बना देते हैं जबकि रासायनिक तत्वों से बने रंग जहां त्वचा व आंखों के लिए हानिकारक एवं अनेकानेक बीमारियों के कारण भी बनते हैं। इस अवसर पर यह सदैव ध्यान देने वाली बात है कि होली प्रेम, सौहार्द व समरसता का पर्व है न कि वैमनस्य, कटुता या आपसी घृणा के प्रदर्शन का। इसलिए रंगों का प्रयोग दूसरे की भावना का सम्मान करते हुए करें। यही होली के पावन एवं पुनीत पर्व का पाथेय व संदेश भी है।

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