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श्राद्ध कर्म

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रिपोर्ट: एके बिन्दुसार (चीफ एडिटर -BMF NEWS NETWORK)

श्राद्ध कर्म
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अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :- “हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दे) को आप संतुष्ट/सुखी रखें। इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगायें।

*तुलसी*
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श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देनेवाला है।
पद्मपुराण ~

*श्राद्ध के लिए विशेष मंत्र*

*ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा।*

इस मंत्र का जप करके हाथ उठाकर सूर्य नारायण को पितृ की तृप्ति एवं सदगति के लिए प्रार्थना करें। स्वधा ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं। इस मंत्र के जप से पितृ की तृप्ति अवश्य होती है और श्राद्ध में जो त्रुटी रह गई हो वे भी पूर्ण हो जाती है।

यह भोजन आप गौ-माता को समर्पित कर दें।

*सर्वपितृ अमावस्या*
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*आश्विन अमावस्या/ सर्वपितृ अमावस्या*
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अश्विनी मास की अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष सर्व पितृ अमावस्या ०२ अक्टूबर दिन बुधवार को पड़ रही हैं. इसे आश्विन अमावस्या, बड़मावस और दर्श अमावस्या भी कहा जाता है।

अमावस्या तिथि का श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु अमावस्या तिथि, पूर्णिमा तिथि तथा चतुर्दशी तिथि को हुई हो।

यदि कोई सम्पूर्ण तिथियों पर श्राद्ध करने में सक्षम न हो, तो वो केवल अमावस्या की तिथि पर श्राद्ध (सभी के लिये) कर सकता है. अमावस्या की तिथि पर किया गया श्राद्ध, परिवार के सभी पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिये पर्याप्त है।

जिन पूर्वजों की पुण्य-तिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध भी अमावस्या तिथि पर किया जा सकता है. इसीलिए अमावस्या श्राद्ध को सर्व – पितृ – मोक्ष अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और फिर साफ-सुथरे कपड़े पहनें. पितरों के तर्पण के लिए सात्विक पकवान बनाएं और उनका श्राद्ध करें. शाम के समय सरसों के तेल के चार दीपक जलाएं. इन्हें घर की चौखट पर रख दें. एक दीपक लें. एक लोटे में जल लें. अब अपने पितरों को याद करें और उन से यह प्रार्थना करें कि पितृपक्ष समाप्त हो गया है इसलिए वह परिवार के सभी सदस्यों को आशीर्वाद दे कर अपने लोक में वापस चले जाएं।

समभ्व हो तो यह करने के पश्चात जल से भरा लोटा और दीपक को लेकर पीपल की पूजा करने जाएं. वहां भगवान विष्णु जी का स्मरण करते हुए पेड़ के नीचे दीपक रखें और जल चढ़ाते हुए पितरों से उन के आशीर्वाद की कामना करें. पितृ – विसर्जन विधि के दौरान किसी से भी बात ना करें।

पुराणों में कईं कथाएँ इस उपलक्ष्य को ले कर हैं. जिसमें कर्ण के पुनर्जन्म की कथा बहुत ही प्रचलित है. एवं हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित में भी श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजली देने का उल्लेख मिलता है. भरत जी के द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख, भरत कीन्हि दशगात्र विधाना तुलसी रामायण में हुआ है।

भारतीय धर्म-ग्रन्थों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गये हैं – *पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण.* इन में पितृ – ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बड़े-बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उस का विकास करने में सहयोग दिया।

*श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌*
अर्थात् जो कार्य श्रद्धा पूर्वक किया जाए वह श्राद्ध है. इसी लिए पितृ – पक्ष में हिन्दू लोग मन, कर्म एवं वाणी से संयम रखते हुए श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध कर्म करते हैं।
*पनपा “गोरखपुरी”*

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