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पत्रकारिता के ‘नये अवतार” सोशल मीडिया के युग में हिंदी पत्रकारिता..!

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रिपोर्ट: निशा कांत शर्मा (एटा )

  • 30 मई हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष✍️

मीडिया के बदलते स्वरुप के दौर में सोशल मीडिया का नया अवतार पत्रकारिता के लिए विशेषतः हिंदी पत्रकारिता के लिए चुनोती बन गया है । यद्यपि इस रूप ने पत्रकारिता के आवश्यक कच्ची सामग्री अर्थात विषयवस्तु को तो सरल सहज रूप में उपलब्ध कराया है ।परन्तु विसंगति सबसे बड़ी यह है विश्वसनीयता विलुप्त हुई जो पत्रकारिता के स्थापित उच्च मानदंड है। इधर सामाजिक क्षेत्रों से मीडिया के इस अवतार के प्रति गहरी अभिरुचि ने इसके प्रभाव को और अधिक विस्तारित कर दिया है । वर्तमान परिवेश में अब सामान्यतः 60 फीसदी लोग इसके द्वारा प्रसारित सूचनाओं/खबरों को सही मानकर तथ्यों को उसी रूप में स्वीकार लेते है,फलस्वरप अनेको बार सोशल पत्रकरिता के कारण शासन प्रशासन और समाज को विकट हालातो से गुजरना पड़ता है। आज हालात यहां तक पहुंच गये है अनेक स्थापित प्रिंट मीडिया भी इनकी विषयवस्तु से अपने समाचारों को संग्रहित करते है। यहां यह कहना हमे समीचीन प्रतीत होता है सोशल मीडिया की उपलब्ध सामग्री तभी उपयोगी हो सकती है जब उसका स्थापित पत्रकारिता के मूल्यों मानदंडों की दृष्टि से सम्यक परीक्षण कर लिया जाए। आज हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर पत्रकारिता का यह नया अवतार खूब सक्रिय दिखा तरह तरह से शुभकामना पत्रकारिता दिवस की उपादेयता पर सन्देश प्रसारित किए जा रहे हैं। अच्छी बात रही पर विस्मय से भरा पहलू यह रहा कि उनमें हिंदी प्रयोग में वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियां जम कर की गई। साफ जाहिर सोशल मीडिया के विविध पटल से जुड़े लोग हिंदी के सामान्य ज्ञान से अनिभिज्ञ रहे होंगे। चूंकि बात हिंदी पत्रकारिता दिवस पर अपनी बात रखने की है इस लिए इस पहलू को अनदेखा नही किया जा सकता.!

 

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ यानि भारत में पत्रकारिता खास तौर पर हिंदी पत्रकारिता का उदय 30 मई 1826 में हुआ जब बंगाल के कलकत्ता से पहला हिंदी समाचार पत्र ” उदन्त मार्तंड ” का प्रकाशन सम्भव हुआ । वैसे इस काल चक्र में अन्य समाचार पत्र भी प्रकाशित हुए परन्तु वे सब गैर हिंदी भाषा के पत्र रहे । उदन्त मार्तंड का शाब्दिक अर्थ “समाचार सूर्य होता है।इससे पहले हिंदी समाचार पत्र के संपादन का गौरव उत्तर प्रदेश के कानपुर के पंडित जुगल किशोर शुक्ल को प्राप्त हुआ था । तब से भारत में हिंदी पत्रकारिता दिवस 30 मई को पत्रकारिता के गौरव दिवस के रूप में प्रचलित है ।यहां हम पुनः बता दें बदलते जमाने के साथ भारत में पत्रकारिता और इसके माध्यमों का स्वरूप बदला है। आज डिजिटल जर्नलिज्म का जमाना हमारे सामने है ईमेल , यू ट्यूव प्लेट फार्म, ब्लॉग ,ट्विटर, इंटरनेट एप , न्यूज पोर्टल वेब मीडिया की दुनिया में सोशल मीडिया नये रूप में मौजूद हैं इलेक्ट्रॉनिक चैनलों की प्रतिस्पर्धा ने तो एक हाथ आगे बढ़ कर पत्रकारिता की कुंजी ” विश्वसनीयता को ही दाव पे लगा दीया है।सोशल मिडिया के रूप में पत्रकारिता के नए अवतार ने तो पत्रकारिता के मूल्य/ सिद्धान्त धूलधूसरित कर दिए हैं यह कहने में हिचक नही होनी चाहिए ये और बात है नई नस्ल चैनलों डिजिटल मीडिया को अधिक देख रही है दिलचस्पी ले रही है । परंतु इन सबसे इतर प्रिन्ट मिडिया विश्वसनीयता प्रमाणिकता के मूल्यों को बचा कर आज भी काम करते हुए लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की गरिमा बचाये हुए है । यह मीडिया में गिरते हुए मूल्यों और पाठकों के विश्वसनीयता के संकट से जूझते हुए भारत की प्रिण्ट मिडिया का फील गुड है जो इस स्तम्भ के प्रति विश्वास बनाये हुए है ।

*आंचलिक स्तर पर पत्रकारिता का चेहरा*

कभी उर्वरा मस्तिष्क के पत्रकारों की कर्म भूमि और समर भूमि रही एटा की पत्रकारिता सोशल मीडिया के मोहपाश में बुरी तरह जकड़ी चुनोतियो से जूझ रही है विद्रूप यह कमोवेश पत्रकारिता के सभी छोटे बड़े समूह वर्तमान परिवेश में जात धर्म दलों के निजी स्वार्थों के मकड़जाल में फंस कर ” स्वार्थ की गिरोहबंदी ” में बंट गये हैं पत्रकारिता के मूल्य सिद्धान्तों और स्थापित ऐतिहासिक मूल्य और जरूरी जन सरोकार को अनदेखा कर अपने मिशनरी फ़र्ज़ से भी विमुख हुई है ।

यहाँ एक हैरतंगेज सच को इस मौके पर उजागर करने में हमे कोई गुरेज़ नही वो यह कि एक सैकड़ा से अधिक पत्रकारों के इस विशाल समूह में पत्रकारिता मिशन का प्रारंभिक ” ककहरा ” ८०% लोगों नही पता और न यह विशालकाय समूह इसके व्यवहारिक पाठ्यक्रम का ज्ञान रखता है..!!!

उस पर समाचार लेखन संवाद प्रेषण के मूल भूत ज्ञान की बातें बघारना तो बहुत दूर की बात होगी यही कारण है सोशल मीडिया के लम्बे चौड़े नामधारी पटल अनर्गल बेबुनियाद मीडिया कवरेज से भरे आये दिन दिखते रहते है जो आये दिन निजी स्वार्थों से पूर्ण निहित स्वार्थों का मीडिया एजेंडा चला कर काम करते है। जब स्वार्थपूर्ण टकराव सतह पर आता है तो यह बानगी खुदबखुद ऐसे मीडिया पटल पर दिख जाती हैं।

ऐसे में यह सवाल ज्वलन्त और लाज़िमी है पत्रकारिता का मौलिक स्वरुप कैसा होना चाहिए और इस साहसिक कर्तव्य पथ पर किन लोगों को आना चाहिए आदि अनेक प्रश्न हो सकते..?? जिन पर गहन विमर्श की जरूत है। क्या वर्तमान पत्रकारिता का स्वरुप देशकाल राष्ट्र समाज के लिये कोई अहम रोल निभाने की पेशागत सामर्थ्य रखता है? फिलहाल पत्रकारिता की तस्वीर ऐसी नही दिख रही हम खुद भी कोई इफेक्टिव रोल निभा सके है यह भी हम नही कह सकते। क्योंकि ऐसी बदशक्ल पत्रकार जमात के बीच हम भी तो रह रहे पत्रकार मित्र कह सकते है यह भी बात पर आज इन सब पर चर्चा का अवसर है इस लिये साझा करने की जरूरत है जो सामयिक सन्दर्भ में उचित प्रतीत होती है। यह सच है जिले के विकास और विकासवादी सम्भावनाओ के नाम पर खूब दोहन होता रहा है। हम आप और सब विकास की छद्म प्रगति और लूट को टुकर टुकर देखते रहे हैं।नोकरशाही की गणेश परिक्रमा की प्रवृति हद दर्जे तक पनपी है।पत्रकारिता जन सरोकारों से जुड़ कर क्या काम कर सकी है यह भी मंथन करने का यह दिन अवसर देता है। इस पर हमारा मानना है कतिपय पत्रकार समाज जो इन सब पर आंख में आंख डाल कर सवाल कर सकता था वह धृतराष्ट्र की तरह बरसो से मौन ही रहा व्यवसायगत स्वार्थ खाने कमाने की प्रवृति ने मिलीभगत कर परोक्ष रूप से पत्रकारिता के मूल्यों का क्षरण किया है।हमारा मानना है “पत्रकारिता का धर्म ” इसकी इजाजत बिलकुल नही देता और हरगिज़ नही ,यदि ऐसा लोग करते हैं तो वह मूल्यों की हत्या सरीखा*जघन्य अपराध* है इसे पत्रकार समाज और उसके मर्मज्ञ सहन करते हैं और चुप हैं तो वे भी अपराधी हैं ।

अब पत्रकारिता में प्रवेश पाए पत्रकारों की बात करें तो इस जमात में कई प्रकार के लोग हैं पहले तो ऐसे पत्रकार जो समाज की दिशा और दशा को कलम के इंक़लाब से बदलने की भाव भूमि से जुड़े परन्तु वे अब विसंगतियों के बीच हारे हुए थके हुए योद्धा बन चुके है । दूसरे किस्म के वे लोग है जो अभिजात्य वर्ग से अचानक निकले और रसूख के दम पर पत्रकार बन बैठे तीसरे किस्म के ऐसे लोग पत्रकारिता का लबादा ओढ़ बैठे जिन्हें पत्रकारिता बिना निवेश का बेहतर धंधा लगती है चौथे क़िस्म के लोग अपने अपराधी इतिहास और अपराधों को छिपाने के लिए पत्रकार समाज का हिस्सा बन बैठे हैं । पांचवे किस्म के वे लोग हैं जो सीधे पत्रकार मंचों पर देखे जाते हैं परंतु उनका जमीनी स्तर पर भागेदारी नही दिखती ऐसे लोग बाकायदा मंच हासिल करने के लिए कीमत अदा करते हैं। छठे किस्म के लोग सोशल मीडिया के अभ्युदय के बाद आये जो महज शौकिया निचले स्तर की ब्यूरोक्रेसी में घुसपैंठ बना कर अपने छोटे छोटे और बहुत छोटे स्वार्थ पूर्ति में संलग्न हैं। अब यक्ष प्रश्न ये कि ” स्वार्थगत गिरोबन्दी में बटी फंसी पत्रकारिता को स्वार्थ के चक्र व्यूह को तोड़ कर कैसे निकाला जाए ? इस विषय पर समाजी प्रबुद्धों का बहुत बड़ा वर्ग पहल के लिए चिन्तित और उतारू है यदि वरिष्ठ पत्रकारों पत्रकारिता के मूल्यों के प्रति संवेदित प्रशासन वे सभी अनुभवी वरिष्ठ पत्रकार जिनके ह्रदय में इस गिरते स्तर को लेकर दर्द छलकता है मिल कर समन्वित प्रयास करे तो प्रयासों की संजीवनी से लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को लांछित होने से बचाया जा सकता है यदि प्रेस जगत से ही यह पहल कदमी हो तो बात दूर तलक जायेगी।

,?आइये ! आज हम सब भारतीय पत्रकारिता के ऐतिहासिक गौरव दिवस हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर पत्रकारिता के बनते बिगड़ते स्वरूप पर ऐतिहासिक आईने की कसौटी पर पुनर्मूल्यांकन करे और बदलते युग में कोई नई राह बनाई जाए।

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