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भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया प्रतिदिन स्वतंत्रता दिवस नहीं बल्कि परतंत्रता दिवस के दौर से गुजर रहा है

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रिपोर्ट: एके बिन्दुसार (चीफ एडिटर BMF NEWS NETWORK)
इसलिए परतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सहित आपसे एकजुट होकर अपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने की अपील

एके बिंदुसार
संस्थापक
भारतीय मीडिया फाउंडेशन

World Press Freedom Day 2024:
क्यों मनाया जाता है विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस? जानें इस दिन का महत्व और इतिहास
हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस यानी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मनाया जाता है. यह दिन दुनियाभर के पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को समर्पित होता है.
: मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ यानी फोर्थ पिलर ऑफ डेमोक्रेसी कहा जाता है. हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस यानी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मनाया जाता है. यह दिन उन पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को समर्पित है, जो सच को सामने लाने और जनता को सूचित करने के लिए खतरे का सामना करते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पत्रकारों के लिए मनाया जाना आज के वर्तमान समय में आवश्यक है?
क्या आज वर्तमान समय में पत्रकारों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है?
क्या आज के वर्तमान समय में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को संवैधानिक अधिकार प्राप्त हो चुका है?
अगर इन सब सवालों का जवाब नहीं है तो फिर किस बात का विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस?
उपरोक्त सवालों पर पत्रकारों को विचार करना चाहिए जो माहौल चल रहा है उस हिसाब से अगर बात की जाए तो आज हम सिर्फ स्वतंत्र भारत के गुलाम पत्रकार के श्रेणी में हैं वही विश्व लेवल पर हम सभी साथी भारत सहित संपूर्ण विश्व में मीडिया की स्वतंत्रता के संघर्ष कर रहे हैं।
आज वर्तमान परिवेश में अगर समीक्षा किया जाएं तो भारत सहित पूरे विश्व में लाखों पत्रकारों के ऊपर फर्जी मुकदमे हैं जो न्यायालय में पेंडिंग है न्याय की आस लगाए लोग दर दर की ठोंकरे खा रहे हैं अगर हम इधर 10 वर्षों की समीक्षा करें तो न जाने कितने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले समाचार संकलन करने वाले प्रकाशन करने वाले पत्रकार एवं संपादकों की हत्या हो गई और अनगिनत पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं और संपादकों के ऊपर इधर 10 वर्षों के बीच में फर्जी मुकदमे लगाकर जेल भेज दिया गया हर मोड़ पर पत्रकारों का शोषण जोरदार तरीके से हो रहा है क्या ऐसी स्थिति में हम राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस की कल्पना कर सकते हैं क्या न्याय उचित है।
आज कई पत्रकार संगठनों के माध्यम से पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के अभिव्यक्ति की दूसरी आजादी की प्रथम महा क्रांति का ऐलान हो रहा हैं तो फिर यह कहना गलत नहीं होगा कि हम स्वतंत्र भारत के परतंत्र पत्रकार है।
भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक एके बिंदुसार ने नागरिक पत्रकारिता की स्थापना पर बल देते हुए कहां कि बिना नागरिक पत्रकारिता की स्थापना से देश को सशक्त नहीं बनाया जा सकता।
उन्होंने कहा कि परतंत्रता एक अभिशाप है।
पराधीनता दुखों एवं कष्टों की जननी है। पराधीन व्यक्ति के पास कितनी ही सुख-सुविधाएँ क्यों न हों, उसे सुख की अनुभूति नहीं होती, ठीक उसी प्रकार जैसे-सोने के पिंजड़े में बंद पक्षी सोने की कटोरी में भोजन पाने पर भी किसी प्रकार के सुख का अनुभव नहीं करता। उसे भूखों मरना पसंद है, पर परतंत्र रहना नहीं। पराधीन व्यक्ति सदैव दूसरों का मुँह ताका करता है, उसके पास स्वयं निर्णय का अधिकार नहीं होता, उसकी सोच उसकी अपनी नहीं होती।

परिणामतः उसकी आत्मा का हनन होता जाता है, उसका आत्मसम्मान नष्ट हो जाता है, उसकी बुद्धि कुंठित होती चली जाती है, उसे विवेक का ज्ञान नहीं रहता। जड़वत हो वह दूसरों की आज्ञा पालन करते हुए ही अपना जीवन बिताया करता है। इस प्रकार पराधीन मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास रुक जाता है। भाव एवं विवेक शून्य हो उसे अपमानित जीवन बिताना पड़ता है। पराधीनता की लज्जा का कलंक सदैव उसके माथे पर लगा रहता है और सपने में भी उसे सुख की प्राप्ति नहीं होती। चाहे पिंजरे में बंद चिड़िया हो या खुंटे से बँधी गाय, सभी को विधि विधान एवं अपने राष्ट्र की संविधान एवं प्रस्तावना के अनुकूल स्वतंत्रता प्रिय होती है।

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