Search
Close this search box.

मीडिया एवं पत्रकार संगठनों के अलग अलग गुडबाजी के कारण पत्रकारों पर बढ़ते अत्याचार।

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

निष्पक्ष, निर्भीक लेखनी पर पत्रकारों पर हुए मुकदमों की बौंछार

2019 से अब तक की खास रिपोर्ट।

एके बिंदुसार (संस्थापक- भारतीय मीडिया फाउंडेशन
एवं इंटरनेशनल मीडिया आर्मी)
***************************
वर्तमान परिवेश मे निष्पक्ष- निर्भीक पत्रकारिता पर संकट के बादल छाये हुए हैं। निष्पक्ष लेखनी को लेकर देश व प्रदेश मे सैकडों पत्रकारों पर मुकदमें दर्ज कर लोकतंत्र को दबाने व कुचलने कार्य किया गया। हलांकि पत्र- पत्रिकाओं में सदा से ही समाज को प्रभावित करने की क्षमता रही है। समाज में जो हुआ, जो हो रहा है, जो होगा, और जो होना चाहिए यानी जिस परिवर्तन की जरूरत है, इन सब पर पत्रकार को नजर रखनी होती है। आज समाज में पत्रकारिता का महत्व काफी बढ़ गया है। इसलिए उसके सामाजिक और व्यावसायिक उत्तरदायित्व भी बढ़ गए हैं। पत्रकारिता का उद्देश्य सच्ची घटनाओं पर प्रकाश डालना है, वास्तविकताओं को सामने लाना है। इसके बावजूद यह आशा की जाती है कि वह इस तरह काम करे कि ‘बहुजन हिताय’ की भावना सिद्ध हो।

वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक दिनेश प्रसाद मिश्रा के लेखनी पर हम प्रकाश डालते हैं और यह स्पष्ट हो जाएगा कि पत्रकारों की दुर्दशा क्यों किस कारण से………..
महात्मा गांधी के अनुसार, ‘पत्रकारिता के तीन उद्देश्य हैं- पहला जनता की इच्छाओं, विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाएं जागृत करना और तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को नष्ट करना है। गांधी जी ने पत्रकारिता के जो उद्देश्य बताए हैं, उन पर गौर करें तो प्रतीत होता है कि पत्रकारिता का वही काम है जो किसी समाज सुधारक का हो सकता है। पत्रकारिता नई जानकारी देता है। लेकिन इतने से संतुष्ट नहीं होता वह घटनाओं, नई बातों नई जानकारियों की व्याख्या करने का प्रयास भी करता है। घटनाओं का कारण, प्रतिक्रियाएं, उनकी अच्छाई बुराइयों की विवेचना भी करता है।

पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के अनुसार, पत्रकारिता पेशा नहीं, यह जनसेवा का माध्यम है। लोकतांत्रिक परम्पराओ की रक्षा करने शांति और भाईचारे की भावना बढ़ाने में इसकी भूमिका है।समाज के विस्तृत क्षेत्र के संदर्भ में पत्रकारिता के निम्नलिखित उद्देश्य व दायित्व बताये जा सकते है-

नई जानकारियां उपलब्ध कराना,सामाजिक जनमत को अभिव्यक्ति देना,समाज को उचित दिषा निर्देश देना, स्वस्थ मनोरंजन की सामग्री देना, सामाजिक कुरीतियों को मिटाने की दिशा में प्रभावी कदम उठाना, धार्मिक सांस्कृतिक पक्षों का निष्पक्ष विवेचन करना, सामान्यजन को उनके अधिकार समझाना, कृषि जगत व उद्योग जगत की उपलब्धियां जनता के सामने लान, सरकारी नीतियों का विश्लेषण और प्रसारण, स्वास्थ्य जगत के प्रति लोगों को सतर्क करना, सर्वधर्म समभाव को पुष्ट करना, संकटकालीन स्थितियों में राष्ट्र का मनोबल बढ़ाना, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का प्रसार करना है।

समाज में मानव मूल्यों की स्थापना के साथ जन जीवन को विकासोन्मुख बनाना पत्रकारिता का दायित्व है। पत्रकारिता के सामाजिक और व्यवसायिक उत्तरदायित्व के अनेकानेक आयाम हैं। अपने इन उत्तरदात्वि का निर्वाह करने के लिए पत्रकार का एक हाथ हमेशा समाज की नब्ज पर होता है।

उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर लगातार मामले दर्ज

सिर्फ अभी नहीं, बल्कि पिछले काफी वक्त से पत्रकार इस तरह के मामले अपने ऊपर झेल रहे हैं। खासकर, उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर के कई मामले सामने आए। वहां पिछले डेढ़ साल में कम से कम 15 पत्रकारों के खिलाफ खबर लिखने के मामलों में मुकदमे दर्ज कराए गए हैं। आखिर गली गली में चल रहे पत्रकारों के संगठनों का औचित्य क्या है ? सामाजिक संस्था की आड़ में ये कथित पत्रकार हित की बात करने वाले संगठन करते क्या हैं ? ये पृथक मुद्दा है। 31 अगस्त 2019 को मिर्जापुर में पंकज जायसवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। पंकज जायसवाल ने सरकारी स्कूल में व्याप्त अनियमितता और मिड डे मील में बच्चों को नमक रोटी खिलाए जाने से संबंधित खबर छापी थी। काफी हंगामा होने के बाद पंकज जायसवाल का नाम एफआईआर से हटा दिया गया और उन्हें इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई। इस घटना का दिलचस्प पहलू जिले के कलेक्टर का वह बयान था जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘प्रिंट मीडिया का पत्रकार वीडियो कैसे बना सकता है?’ इस मामले में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को हस्तक्षेप करना पड़ा था।

जैसे 16 सितंबर, 2020 को सीतापुर में रवींद्र सक्सेना ने क्वारंटीन सेंटर पर बदइंतजामी की खबर लिखी। उन पर सरकारी काम में बाधा डालने, आपदा प्रबन्धन के अलावा एससीध्एसटी ऐक्ट की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया। आजमगढ़ के एक स्कूल में छात्रों से झाड़ू लगाने की घटना को रिपोर्ट करने वाले छह पत्रकारों के खिलाफ 10 सितंबर, 2019 को एफआईआर हुई। पत्रकार संतोष जायसवाल के ख़िलाफ सरकारी काम में बाधा डालने और रंगदारी मांगने संबंधी आरोप दर्ज किये गए। बिजनौर में दबंगों के डर से वाल्मीकि परिवार के पलायन करने संबंधी ख़बर के मामले में सात सितंबर, 2020 को पांच पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले मे पुलिस कप्तान हेमराज मीना द्वारा आरोपी ब्राहमणों का जनेउ तोडवाने की घटना का खबर लिखने वाले पत्रकार दिनेश प्रसाद मिश्र को भी निष्पक्ष निर्भीक पत्रकारिता का तोहफा मिला। जनसंन्देश टाइम्स अखबार मे छपे इस खबर से चिढकर पुलिस कप्तान हेमराज मीना ने 13 दिनों के भीतर थाना कोतवाली मे चार फर्जी मुकदमें दर्ज करा कर गुण्डा एक्ट की भी कार्यवाही कर दिया गया। हलांकि यह प्रकरण भारतीय प्रेस परिषद मे विचाराधीन है। इस मामले मे पीसीआई ने एसपी, डीएम सहित 6 जिम्मेदारों से दो सप्ताह मे जबाब मांगा है।

पिछले साल फरवरी में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में पदयात्रा निकाल रहे दस लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था जिसमें पत्रकार प्रदीपिका सारस्वत भी शामिल थी। तब पुलिस ने कहा कि उन लोगों के पास कुछ ऐसे दस्तावेज मिले थे जिनसे माहौल खराब होने की आशंका थी लेकिन इसे लेकर और कोई जानकारी नहीं दी थी। मजिस्ट्रेट ने जमानत के लिए ढाई लाख के बॉन्ड भरना तय किया।
पिछले साल जून में एक न्यूज वेबसाइट स्क्रॉल की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा और वेबसाइट की मुख्य संपादक के खिलाफ वाराणसी पुलिस ने एक महिला की शिकायत पर एससी-एसटी एक्ट में एफआईआर दर्ज की थी। इससे कुछ समय पहले ही वरिष्ठ पत्रकार और संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ भी उत्तर प्रदेश के अयोध्या में दो एफआईआर दर्ज की गई थीं। उन पर आरोप थे कि उन्होंने लॉकडाउन के बावजूद अयोध्या में होने वाले एक कार्यक्रम में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शामिल होने संबंधी बात छापकर अफवाह फैलाई। हालांकि ‘द वायर’ ने जवाब में कहा है कि इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री का जाना सार्वजनिक रिकॉर्ड और जानकारी का विषय है, इसलिए अफवाह फैलाने जैसी बात यहां लागू ही नहीं होती।

पुलिस और प्रक्रिया

कई मामलों में पुलिस पर भी ये आरोप लगे कि उन्होंने गिरफ्तारी के लिए प्रक्रिया का पालन नहीं किया। हाथरस की घटना कवर करने आए केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया तो 24 घंटे तक उनके परिवार या करीबी को नहीं बताया गया कि उन्हें कहां रखा गया है।

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाली ताकि उनके बारे में पता चल सके। याचिका में कहा गया था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का उल्लंघन करते हुए हिरासत में लिया गया है।

सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार किए गए पत्रकार मनदीप पुनिया के बारे में भी पुलिस ने कई घंटों तक उनके परिवार को जानकारी नहीं दी। उनकी पत्नी का कहना है कि उन्हें 16 घंटे बाद उनकी खबर मिल पाई। मनदीप के साथी पत्रकारों और उनके वकील का दावा है कि उन्हें बिना किसी वकील के ही मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर दिया गया।

पत्रकारों को मिला राजद्रोह और यूएपीए का तोहफा

हाल ही में द फ्रंटियर मणिपुर के दो एडिटर्स और एक रिपोर्टर पर देशद्रोह और यूएपीए का मामला दर्ज किया गया। पुलिस का कहना था कि लेख लिखने वाले ने मणिपुर के लोगों को सच्चा क्रांतिकारी बनने के लिए उकसाया है। पत्रकारों के संगठन एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी उनकी रिहाई की मांग की।

संगठन का कहना था, “एडिटर्स गिल्ड का मानना है कि पुलिस मौलिक अधिकारों और आजादी की सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों को लेकर जागरूक नहीं है और इसलिए कोई मीडिया संस्थान इन कानूनों के अतार्किक इस्तेमाल से सुरक्षित नहीं है। ये पहली बार नहीं है जब प्रशासन ने पत्रकारों और संपादकों पर राजद्रोह और यूएपीए जैसे कड़े कानूनों का इस्तेमाल किया है।

भारत में प्रेस फ्रीडम

पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्र संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ हर साल 180 देशों की प्रेस फ्रीडम रैंक जारी करती है। इस इंडेक्स में भारत की रैंक लगातार गिरती जा रही है. 2017 में 136वें स्थान के बाद 2020 में भारत 180 देशों में 142वें नंबर पर है। संस्था ने भारत को लेकर कहा था कि साल 2020 में लगातार प्रेस की आजादी का उल्लंघन हुआ, पत्रकारों पर पुलिस की हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं का हमला और आपराधिक गुटों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों ने बदले की कार्रवाई की।

इस पर सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट भी किया था कि ‘भारत में मीडिया को पूरी स्वतंत्रता है। आज नहीं तो कल हम भारत की प्रेस स्वतंत्रता की गलत छवि बनाने वाले सभी सर्वे को एक्सपोज करेंगे।

Leave a Comment

और पढ़ें