प्रियंका चोपड़ा आज सबसे बड़े वैश्विक आइकनों में से एक हैं. प्रियंका चोपड़ा ने वर्ष 2000 में मिस इंडिया वर्ल्ड का खिताब जीता था.मिस वर्ल्ड का ताज पहनकर फैशन की दुनिया में धाक जमाने के बाद प्रियंका ने फिल्मी दुनिया में भी अपनी अलग पहचान बनाई. लेकिन मिस वर्ल्ड के ताज तक पहुंचना प्रियंका के लिए आसान नहीं था. सबसे बड़ी चुनौती उन्हें अपने घर में झेलनी पड़ी. पेंगुइन स्वदेश से आई प्रियंका चोपड़ा की आत्मकथा ‘अभी बाकी है सफर’ में उन्होंने अपने निजी जीवन से जुड़े कई खुलासे किए हैं. प्रस्तुत है इस पुस्तक का एक अंश-
नवंबर में, मॉम और सिड के फोटो भेजने के करीब डेढ़ महीने बाद, स्कूल और ट्यूशन के बीच के एक ब्रेक में लंच करते हुए वो फोन कॉल आई जिसने मेरी लाइफ चेंज कर दी. पुरानी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ देखते हुए, आँखें स्क्रीन पर ही गड़ाए, मैंने फोन उठाया.
“हेलो! मैं फेमिना मैगजीन से ईला,” एक बिजनेस लाइक आवाज सुनाई दी. तुम मिस इंडिया पैजेंट नॉर्थ इंडिया से शॉर्ट लिस्ट कर ली गई हो और प्रिलिमनरी राउंड परसों दिल्ली में है. यह पता है.” जो भी उन्होंने बताया मैंने जल्दी से लिख लिया. “वहां सुबह आठ बजे पहुंच जाना और एक स्विमसूट और हील्ज़ जरूर ले के आना.” फोन रख दिया गया. साफ था उनको ऐसे ही बहुत से कॉल्स और करने थे.
मैं स्टंड थी. मुझे पता नहीं था कि मॉम और सिड ने कोई एप्लीकेशन भेजी है और अपनी इन्नोसेंस में मैं ये सोच रही थी कि मिस इंडिया वालों ने शायद मेरे मे क्वीन बनने के बारे में सुना होगा. “ओ माय गॉड मॉम! मैं बरेली में इतनी पॉप्यूलर हूं कि मिस इंडिया वालों को भी पता है कि मैं कौन हूं!”
फिर जब मॉम ने पूरी बात समझाई तब मुझे समझ आया मुझे कितना बड़ा मौका दिया गया है. अब सवाल यह था- डैड को कौन बताएगा कि मेरे प्री-बोर्ड से ठीक पहले मैं दिल्ली में एक ब्यूटी पैजेंट में पार्टिसिपेट करने वाली थी? प्री-बोर्ड जनवरी में थे और असली बोर्ड मार्च में. मुझे उनमें भी अच्छा करना था क्योंकि अगर मैं अच्छा करती तभी मुझे अच्छी जॉब मिलती और मेरा फ़्यूचर बनता, क्योंकि हमारी फैमली में सभी प्रोफैशनल्स थे जिनके जॉब्स और करिअर्स थे. कोई स्विमसूट और हील्ज़ में परेड करने वाला नहीं था.
तरकीबें निकालने वाली मेरी मॉम ने इसके लिए भी एक योजना बनाई, “आज जब डैड घर लौटेंगे तो अच्छे से बिहेव करना, बी नाइस.” उन्होंने कहा, “ऐटिटूड मत दिखाना. मैं म्यूज़िक लगाऊंगी, फिर हम साथ में डिनर करेंगे और फिर तुम अपने कमरे में जाओगी और आगे का मैं देख लूंगी. शैंपेन के साथ मैं उनसे बातकर लूंगी.” जब भी मॉम को डैड को किसी बात के लिए मनाना होता, जैसे उस दिन शैंपेन काम आती. फाइनली डैड बस इतना चाहते थे कि मैं अकेले नहीं जाऊं. जिसका मतलब था कि मॉम मेरे साथ पहले राउंड के लिए जाएंगी. लेकिन पहले हमें पैकिंग करनी थी और दिल्ली पहुंचाना था, थैंक गॉड ट्रेन से दिल्ली तक का सफर सिर्फ पांच घंटे का था.
अजीब बात यह थी कि एक्साइटेड होने के बजाय सबसे पहले मैंने रिलीफ महसूस किया: रिलीफ पढ़ने के प्रेशर से और आने वाले एग्ज़ैम्स से. प्रिलिमिनरी तक पहुंचने से मैं खुश थी लेकिन इसके आगे जाने के लिए अपनी कैपेबलिटि मुझे मालूम ही नहीं थी; मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मैं फेमिना मिस इंडिया के अगले राउंड तक पहुंचूंगी. तो घबराहट की कोई वजह ही नहीं थी. और इस मौके ने अभी तक मेरे अंदर की कंपटीटिवनैस को जगाया भी नहीं था- अभी तक तो नहीं.
आनन्द लेना सिर्फ लड़कों का ही नहीं, लड़कियों का भी बराबर हक है- जयंती रंगनाथन
मॉम और मैं प्रिलिमिनरी से एक दिन पहले दिल्ली पहुंचे और मॉम मुझे एक सैलून ले गई मुझे चमकाने के लिए. ये किसी रोमांटिक कॉमेडी के मेक ओवर या मोंटाज जैसा था: मेरे बेकाबू बालों को ब्लोड्राई किया गया, मेरे मोटी आइब्रोज की थ्रेडिंग की गई और मैनी-पैडी जो शायद ही कभी हुए थे, करवाए गए. लगभग एक साल तक बस पढ़ाई करने के बाद इससे मुझे अपना स्ट्रेस कम होता लगा और मैं एकदम हल्का और फ्रेश महसूस करने लगी.
जब मेरा नाम बुलाया गया मैं ऊपर होटल के एक सुईट में गई जहां प्रिलिमनरी सेशन हो रहे थे. एक बड़े लिविंग रूम को जजों के पैनल के लिए खाली किया गया था. प्रदीप गुहा वहां थे, जो उस टाइम फेमिना मिस इंडिया के नेशनल डायरेक्टर थे और बेन्नेट, कोलमेन एंड कंपनी के प्रेजिडेंट भी, जो दोनों टाइम्स ऑफ इंडिया और फेमिना के पब्लिशर हैं और उस समय मिस इंडिया प्रतियोगिता के आयोजक थे. सत्य सरण जो फेमिना की एडिटर थीं, टाइम्स ऑफ इंडिया से दो और लोग- देश का सबसे बड़ा अखबार और उस प्रतियोगिता की मुख्य स्पॉन्सर और ऑर्गेनाइजर भी थे; और दिल्ली की एक फेमस मॉडल. वे सब एक लंबे टेबल के पीछे बातचीत कर रहे थे जबकि मुझे एक बैडरूम में भेज दिया गया.
वो कमरा सुंदर लड़कियों से भरा हुआ था. कुछ पलंग पर आराम कर रही थीं, कुछ खिड़की के पास थीं, कुछ बाथरूम में अपने लैग्स शेव कर रही थीं और कुछ वहां जो एक ही शीशा था, उसके सामने खड़े होने की होड़ में थीं. इला और एक अन्य लड़की धीरे-धीरे से सब की लंबाई और वेट नाप रही थीं. उस शोर में मैं थोड़ी बहुत उनकी बातचीत सुन पा रही थी. सैवी अपनी नए पैराशूटऐड की बातकर रही थी, मोना अपने गुजराती मैगजीन के कवर की, लक्ष्मी साड़ियों के एक नए कैंपेन की बातें बता रही थी. काफी लड़कियां एक-दूसरे को जानती थीं. मैं किसी को नहीं जानती थी और सत्रह साल की उम्र में वहां सबसे छोटी थी. मेरा आखिरी काम केमिस्ट्री की क्लास था. मेरी एक ही असली क्वालिफिकेशन थी मे क्वीन बॉल जीतना, जहां केवल साठ के करीब लोग थे. मिस इंडिया कॉम्पिटिशन को लाखों लोग टीवी पर देखने वाले थे.
पुस्तक: अभी बाकी है सफर
लेखक: प्रियंका चोपड़ा जोनस
प्रकाशक: पेंगुइन स्वदेश
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FIRST PUBLISHED : February 20, 2024, 11:07 IST