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दोस्ती में दायरा तो शादी-विवाह में सही समय, सही साथी व सही उम्र जरुरी – एसएसपी

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रिपोर्ट: निशा कांत शर्मा 
( एसएसपी ने सरस्वती विद्या मंदिर में छात्र छात्राओं को बताया किशोरावस्था में सही निर्णय लेने के मंत्र )
एटा ! आज मगंलवार को महिलाओं एवं बालिकाओं की सुरक्षा, उनकी जागरूकता व स्वावलंबन एवं उनके प्रति होने वाले अपराधों में कमी लाने हेतु चलाए जा रहे “ऑपरेशन जागृति 2.0” अभियान के तहत वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार सिंह द्वारा कोतवाली नगर क्षेत्र के सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल में पहुंच स्कूली छात्र एवं छात्राओं को आज की युवा पीढ़ी द्वारा किशोरावस्था में घर से चले जाने (इलोपमेंट) के सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक रूप से होने वाले नुकसानों के बारे में विस्तार से बताया, उन्होंने कहा कि कम उम्र में नासमझी के चलते किशोर-किशोरियां आये दिन प्रेम सम्बन्धों में घर से चले जाते हैं, जिसका उनके परिवार, समाज तथा स्वयं पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। युवावस्था में प्रवेश करते ही शरीर में होर्मोनल बदलाव आते हैं, उम्र किसी भी तरह के निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होती। नासमझी में इस तरह के कदम उठाने के उपरांत, बाद पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं बचता ‌ इसलिए इस तरह के कदम उठाने से बचें, शादी-विवाह के लिए सही समय, सही साथी, तथा सही उम्र जरुरी होती है। तत्पश्चात वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा स्कूल प्रांगण में पौधारोपण किया गया। इस मौके पर अपर पुलिस अधीक्षक धनंजय सिंह कुशवाहा, क्षेत्राधिकारी नगर विक्रांत द्विवेदी, स्कूल स्टाफ आदि लोग मौजूद रहे।

अभियान के दौरान बताया गया है अक्सर पारिवारिक विवाद / पारस्परिक भूमि विवाद का यथोचित समाधान नहीं दिखने पर अपराधिक घटनाओं में महिला सम्बन्धी अपराधों को जोड़ने की प्रवृत्ति भी सामाजिक रूप से देखने को मिल रही है। संक्षेप में कई अन्य प्रकरणों में ऐसी घटनायें दर्ज करा दी जाती हैं, जिनको बाद महिला एवं बालिकाओं संबन्धी अपराधों की श्रेणी में परिवर्तित कर दिया जाता है। जबकि मूलतः यह पारिवारिक और भूमि विवाद संबन्धी होती है।
दूसरी ओर वास्तविक रूप से महिलाओं एवं बालिकाओं के विरूद्ध जो अपराध होते हैं, उनमें दुष्कर्म, शीलभंग जैसे संगीन मामलों में प्रताड़ित महिलाओं एवं बालिकाओं की मनोस्थिति काफी हद तक प्रभावित होती है और पीड़िता के जीवन में उस घटना का ट्रॉमा और भय सदैव के लिए बस जाता है। उक्त मानसिक आघात से उभरने के लिए पीड़िता को मनोवैज्ञानिक परामर्श की भी आवश्यकता होती है।
एक अन्य प्रकार का ट्रेंड जो सामने आ रहा है, उसमें नाबालिग बालिकाएं लव अफेयर, इलोपमेंट, लिव इन रिलेशनशिप जैसे सेनेरियो में फँस जाती हैं और किन्ही कारणों से उनको समझौता करना पड़ता है। कई बार बालिकायें अपनी सहमति से भी बिना सोचे समझे चली जाती है। साथ ही साथ बदनामी के भय से ऐसा संत्रास झेलना पड़ता है, जिसके कारण वह ऐसी स्थिति से निकलने में अपने आपको अक्षम महसूस करती है। परिवार में आपसी संवादहीनता और अभिभावकों से डर के कारण बालिकाए अपनी बात कह नहीं पाती है। इसके अतिरिक्त आज तकनीक के दुरूपयोग के चलते महिलाओं एवं बालिकाओं के प्रति साइबर बुलिंग के मामले भी सामने आ रहे है। इन सभी परिस्थितियों में सामाजिक जागरूकता, संवाद शिक्षा और परामर्श की बेहद आवश्यकता है ताकि महिलायें एवं बालिकायें इस प्रकार के षड़यंत्रों का शिकार न बने भावनाओं में बहकर अपना जीवन बर्बाद न करें, यदि उनके साथ किसी प्रकार का अपराध घटित होता है तो वह सच बोलने की हिम्मत रख पाये और विधिक कार्यवाही के साथ-साथ उनको परामर्श/सहयोग और पुनर्वास का मौका मिल सके।

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